बिलासपुर का झुग्गा आंदोलन – (हि.प्र.)
बिलासपुर रियासत में 1883 ई. से 1888 ई. तक राजा अमर चंद का शासन रहा। राजा अमरचन्द कुशल शासक नहीं था। इसी काल में राज्य के प्रशासन द्वारा मनमाने ढंग से भूमि लगान और काश्तकारी की अवधि में परिवर्तन किया गया। राज्य में बेगार प्रथा लागू थी। राजा ने बेगार को बंद कर दिया और उसके स्थान पर लोगों से और 25 प्रतिशत कर वसूल करना आरम्भ कर दिया।
घराट पर भी लगान लगाया गया। जिस भूमि का कोई मालिक न रह गया हो उस भूमि पर सरकारी अधिकार किया जाने लगा। इससे जनता क्षुब्ध हो उठी। जनता राजा और उसके प्रशासनिक अधिकारियों के जुल्मों को सहन नहीं कर पा रही थी।
प्रजा ने रियासत के ब्राह्मणों और पुरोहितों से इस अत्याचारी प्रशासन के विरुद्ध आवाज उठाने का अनुरोध किया। बाह्मण लोग जो प्राय: जनता के पथ प्रदर्शक और पूजनीय थे, जनता की प्रार्थना पर एकत्रित हुए और उन्होंने प्रजा के साथ मिल कर आन्दोलन करने की योजना बनाई।
इसे भी पढ़ें : चम्बा जिले का इतिहास
जनता द्वारा आंदोलन :
कोट, लुलहाण, नाडा, गेहडवीं और पंडतेहड़ा आदि गांवों के ब्राह्मण गेहड़वीं गांव में एकत्रित हुए। उन्होंने जनता की सहायता से झुग्गों या ‘झुग्गी’ (यानि घास-फूंस की झोपड़ियां) बनाई। झुग्गों के ऊपर उन्होंने अपने-अपने पूज्य कुलदेव के झण्डे लगाए और दो-दो, चार-चार की टोली में झुग्गी में रहना आरम्भ किया।
घर- बार छोड़कर सत्याग्रही ब्राह्मण भूखे-प्यासे झुग्गों में बैठे रहते और पूरी रियासत भर से लोग दिन-रात झुग्गों के आस-पास आकर बैठ जाते और अपना सहयोग और भागीदारी प्रदर्शित करते।
प्रशासन ने इन सत्याग्रहियों की पीड़ा को जानने की कोशिश नहीं की, अपितु राजा अमर चन्द ने रियासत के तहसीलदार निरजन सिंह के नेतृत्व में पुलिस गार्द गेहड़वीं भेज कर झुग्गों में धरने पर बैठे सत्याग्रहियों को गिरफ्तार करने का आदेश दिया। जब पुलिस गार्द के आने की सूचना सत्याग्रहियों को मिली तो उन्होंने अपने- अपने झुग्गों को आग लगा दी ओर देखते ही देखते स्वयं भी उसमें भस्म हो गए ।
इस हृदय विदारक आत्मदाह के दृश्य को देख कर वहां एकत्रित सहयोगी आन्दोलनकारी प्रजा भड़क उठी । परिणामस्वरूप शान्तिप्रिय सत्याग्रह ने उग्र विद्रोह का रूप धारण कर लिया। प्रजा और पुलिस में भयानक मुठभेड़ हुई और अनेक आन्दोलनकारी शहीद हुए।
इसी समय आवेश में आकर प्रजा के नेता गुलाबा राम नड्डा ने पुलिस गार्ड के कमांडर तहसीलदार निरंजन सिंह को गोली मार दी। लोगों ने घायल निरंजन सिंह को उठाकर जलते हुए झुग्गों में फेंक दिया। पुलिस के बचे हुए सिपाही भागकर बिलासपुर पहुँचे।
आंदोलन के परिणाम :
राजा ने ब्रिटिश सरकार से सहायता लेकर और बड़ी पुलिस टुकड़ी गेहड़वी भेजी और इस उग्र विद्रोह को दबा दिया। 140 ब्राह्मण परिवार रियासत छोड़ कर कांगड़ा चले गए। विद्रोह के नेता गुलाबा राम नड्डा को छह साल कड़ी कैद की सजा देकर ‘सरीऊन किले’ में बन्दी बना दिया। अनेक अन्य आन्दोलनकारियों ने किला बसेह और बछरेटू में कड़ी कैद की सजा काटी।
1884 ई. में राजा ने शहीद हुए सत्याग्रहियों की विधवाओं को पेन्शन लगा दी और रियासत छोड़ कर भागे हुए ब्राह्मण परिवारों को बाईज्जत वापिस बुला लिया तथा सम्मान सहित उनकी जमीन-जायदाद उन्हें सौंप दी। राजा अमर चन्द ने भूमि लगान नकद कर दिया और बेगार भी हटा दी
झुग्गा सत्याग्रह बिलासपुर के गेहड़वी गाँव में हुआ था।
झुग्गा सत्याग्रह बिलासपुर के गेहड़वी गाँव में हुआ था।
बिलासपुर का झुग्गा आंदोलन – (हि.प्र.)
इसे भी पढ़ें : बुशैहर रियासत का दुम्ह आंदोलन
- HPU Shimla All Notification -27 March 2024
- HPU Shimla All Notification -26 March 2024
- UPSC Specialist Grade III, Scientist ‘B’ & Other Recruitment 2024 –Apply Online
- DRDO Graduate Apprentice, Technician & Other Recruitment 2024 -Apply Online
- SBI Specialist Cadre Recruitment 2024 -Apply Online
Nice information