बिलासपुर में आंदोलन – डांडरा आंदोलन
बिलासपुर मे आन्दोलन : 1930 में बिलासपुर में भूमि बन्दोबस्त के समय एक बड़ा विद्रोह उठ खड़ा हुआ। बन्दोबस्त से भूमि लगान व अन्य कर बढ़ने की आशंका हो गई। इसलिये लोगों ने भूमि बन्दोबस्त का विरोध किया।
सबसे पहले ‘परगना बहादुरपुर’ के लागों ने बन्दोबस्त के विरुद्ध आन्दोलन छेड़ा। उन्होंने बन्दोबस्त के कर्मचारियों को लकड़ी, दूध ,घी, रोटी आदि मुफ्त देना बन्द कर दिया। उनके ठहरने का प्रबन्ध करना भी बन्द कर दिया। इस पर कर्मचारियों ने सख्ती करनी आरम्भ की और बन्दोबस्त में गड़बड़ी करके किसानों को तंग किया। बहादुरपुर के लोगों ने तंग आकर पटवारियों के पैमाईश के सामान को तोड़-फोड़ दिया। आपस में एकता रखने और आन्दोलन में पूरी भागेदारी निभाने के लिये नमक चख कर शपथ ली।
इस समय बिलासपुर का राजा आनन्द चन्द (1933-1948) अवयस्क था। राज्य का प्रशासन चलाने के लिये एक काउंसिल बनी हुई थी। स्थिति को देखकर काउंसिल का अध्यक्ष स्वयं उस क्षेत्र में गया । वहां पर आन्दोलनकारियों ने उसे अपनी शिकायतों की एक सूची दी। इसमें नजराने की दर, मछली पकड़ने के लाईसेंस की फीस में बढ़ोत्तरी, भेदभाव पूर्ण वन नीति, माल विभाग के कर्मचारियों की मनमानी और गांव की महिलाओं के साथ अभद्र व्यवहार जैसे मुद्दे शामिल थे।
इसके पीछे लोगों की आर्थिक स्थिति और राज्य के लगाये भारी भू-राजस्व कर की शिकायतों से उत्पन्न स्थिति को काउंसिल का अध्यक्ष पी.एल. चन्दूलाल ठीक प्रकार से न सम्भाल सका और लोगों में असंतोष फैल गया। रियासती पुलिस इस स्थिति से निपटने में असमर्थ थी। इसलिये लाहौर के रेजीडेंट से सैनिक सहायता भेजने के लिये अनुरोध किया गया । उसने रेजीडेंट के अवर सचिव राजा ज्ञान नाथ को कुछ सैनिकों को लेकर भेजा। रियासती सरकार ने इस अधिकारी से बात करके आन्दोलनकारियों को कुछ रियासतें देने का आश्वासन दिया परन्तु लोगों ने इन रियायतों को ठुकरा दिया।
इस पर आन्दोलनकारियो से निपटने के लिये लाहौर से रेजीडेंट जैम्स फिट्स पैटरिक ने सचिव एडवर्ड वेकफील्ड को कुछ और सैनिकों को लेकर बिलासपुर भेजा। पुलिस नमहोल गांव में मेले के अवसर पर एकत्रित कुछ आन्दोलनकारी नेताओं को पकड़ कर बिलासपुर लाई । दूसरे दिन लगभग एक हजार लोग बिलासपुर में अपने इन नेताओं को छुडाने के लिये जमा हुये।
इस भीड़ को सरकार न गैरकानूनी घोषित कर दिया और पुलिस ने उन्हें भगाने के लिये डण्डे चलाये और कुछ आन्दोलकारियों को हिरासत में लेकर जेलों में बन्द कर दिया। 45 व्यक्तियों पर देशद्रोह के मुकद्दमें चले। रियासता सरकार ने इसे भयानक बगावत का नाम दिया। पुलिस द्वारा इस बगावत में डण्डा चलाने के कारण इस आन्दोलन का नाम ‘डाण्डरा आन्दोलन’ पड़ा। इस अवधि में पंजाब की पुलिस तीन मास तक बिलासपुर में रही। 19 लोगों को कैद तथा कुल पच्चीस हजार रूपये दण्ड लगाया गया।
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