Brief History of Chamba District – Himachal Pradesh

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हिमाचल प्रदेश के प्राचीन राज्यों में त्रिगर्त और कुल्लू के बाद चम्बा का स्थान आता है। पुरालेखों तथा वंशावली के आधार पर इसकी स्थापना छठी शताब्दी के मध्य में हुई मानी जाती है। चम्बा के राजाओं के बारे में विवरण हमें कल्हण द्वारा रचित ‘राजतरंगिणी’ में मिलता है। उपलब्ध रिकॉर्ड में पत्थर लेख, शिला लेख तथा ताम्रपत्र लेख प्रमुख हैं।

Table of Contents

राजा मारु (550 AD) :

चम्बा रियासत की स्थापना 550 ई में सूर्यवंशी राजा मारु ने की थी। वंशावली के अनुसार मारु के पूर्वज अपने आप को आयोध्या राजा रामचंद्र से जोड़ते हैं। प्राचीन काल में इस वंश के लोग अयोध्या से आकर कल्पा नामक स्थान में रहना आरम्भ किया। मारु के तीन पुत्र थे जय स्तम्भ जल स्तम्भ और महास्तंभ। राजा मेरू बड़ा भक्त था। जब उसके पुत्र युवा हुये तो उसने कल्पा का राजपाट अपने बड़े पुत्र को दिया और अपने दूसरे दो पुत्र को साथ लेकर काश्मीर की ओर चल पड़ा।

जब वह काश्मीर पहुँचा तो दूसरे पुत्र को वहीं छोड़ दिया और तीसरे पुत्र जय स्तम्भ को साथ लेकर रावी नदी की ऊपर घाटी में पहुँचा। वहाँ पर उसने स्थानीय राणाओं और ठाकुरों को अपने अधीन करके ब्रह्मपुर नगर की बुनियाद रखी और ब्रह्मपुर राज्य की स्थापना की।

आरम्भ में ब्रह्मपुर या भरमौर एक छोटा-सा राज्य था जो केवल रावी घाटी में बड़ा बंगाहल से छतराड़ी तक सीमित था। मेरू ने जब इस राज्य को ठीक से स्थापित कर दिया तो वह राज्य को अपने पुत्र जय स्तम्भ को संभाल कर स्वंय वापिस कल्पा लौट आया।

आदित्य वर्मन (लगभग 620 ई.) :

राजा का नाम वंशावली में आदी वर्मन के नाम से मिलता है। भरमौर के प्राचीन लेखों में इसका नाम दो बार आया है। इन शिला लेखों को उसके प्रपौत्र मेरू वर्मन ने खुदवाया था। आदित्य वर्मन ब्रह्मपुर का पहला राजा था जिसने सर्वप्रथम अपने नाम के साथ वर्मन का उपनाम जोड़ा। कुल्लू के इतिहास में चम्बा के बारे में कई उल्लेख मिलते हैं। सबसे पुराना उल्लेख आदित्य वर्मन के बारे में है।

राजा बाला वर्मन (लगभग 640 ई.) व दिवाकर वर्मन (लगभग 660 ई.) :

दिवाकर वर्मन का नाम भरमौर लेख में पूरा मिलता है परन्तु वंशावली तथा छतराड़ी के लेख में इसका नाम देववर्मन मिलता है।

मेरू वर्मन (लगभग 680 ई.) :

मेरुवर्मन भरमौर का सबसे शक्तिशाली राजा हुआ। इसने ब्रह्मपुर राज्य की सीमा अपने बाहुबल से दूर-दूर तक फैला दी। इसने छतराड़ी के क्षेत्र को जीतकर अपने अधीन कर लिया। इस स्मृति में उसने वहाँ पर शक्ति देवी का एक मन्दिर बनवाया और वहाँ पर देवी की पीतल की मूर्ति की भी स्थापना की। राजा मेरू वर्मन का राज्य चम्बा नगर तक फैला हुआ था। राजा मेरु वर्मन ने कुल्लू के राजा देतेश्वर पाल को हराया था।

मेरू वर्मन ने बहुत से मन्दिर बनवाए। राजा ने भरमौर में मणिमहेश, लक्षणादेवी, गणेश मंदिर और नरसिंह मंदिर और छतराड़ी में शक्तिदेवी के मंदिर का निर्माण करवाया। गुग्गा शिल्पी मेरुवर्मन का प्रसिद्ध शिल्पी था। गम नामक स्थान पर मिले अशाद (आस्था) नामक सामंती राजा के शिलालेख में मरूवर्मन का वर्णन मिलता है।

अजय वर्मन (लगभग 760 ई.) :

भरमौर के गद्दियों के अनुसार वे अजय वर्मन के समय दिल्ली से आकर यहाँ बसे थे। यह राजा बड़ा व्रतधारी था। जब इसका पुत्र बड़ा हुआ तो उसने राज पाट उसे सौंप कर स्वयं संन्यास ले लिया और रावी और वुधिल नदियों के संगम पर ‘अलांसा’ के निकट रहने लगा।

स्वर्ण वर्मन (लगभग 780 ई.) :

इस राजा के बारे में कोई विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं है।

लक्ष्मी वर्मन (लगभग 800 ई.) :

यह राजा थोड़े ही समय राज कर सका। इसके राज्यकाल में हैजा और महामारी फैल गई। इससे बहुत लोग मर गये और जनसंख्या बहुत घट गई। इस बरबादी से लाभ उठाने के उद्देश्य से उत्तर की ओर से एक ‘किरा’ या किरात ( तिब्बती ) नामक जाति ने ब्रह्मपुर पर आक्रमण कर दियाऔर राजा को मार दिया और राज्य पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया। उस समय उन्होंने अपना विस्तार कांगड़ा में किरग्राम’ अर्थात् बैजनाथ तक बढ़ा लिया था।

ब्रह्मपुर में यह उथल-पुथल देखकर कुल्लू के शरणार्थी राजा श्री जरेश्वर पाल ने बुशहर से सहायता लेकर ब्रह्मपुर की सेनाओं को कुल्लू से खदेड़ कर अपने राज्य को फिर उनसे वापिस ले लिया।

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मुसान वर्मन (820) :

जब राजा लक्ष्मी वर्मन मारा गया तो उस समय उसके कोई सन्तान नहीं थी लेकिन रानी गर्भवती थी। अतः मंत्रियों तथा पुराहितों ने शत्रु के भय से रानी को पालकी में बैठाया और ब्रह्मपुर से पूर्व की ओर भाग गये। जब वह देओल के पास गडोह गांव पहुंचे तो रानी को प्रसव-पीड़ा होने लगी। रानी कोई बहाना बनाकर पालकी से उतर गई और पास की एक गुफा में चली गई। वहाँ उसने एक पुत्र को जन्म दिया और उसे वहीं छोड़कर वह वापिस पालकी के पास आई। पालकी उठाने वालों को संदेह हुआ। उन्होंने मंत्री और पुरोहित से बात की।

रानी से पूछताछ की गई पर उसने कोई उचित उत्तर नहीं दिया। अन्त में मंत्री और पुरोहित से रानी ने सब सच बता दिया सब लोग उस गुफा के पास गये। देखा कि बच्चा वहाँ पर ठीक से है और उसके चारों ओर जंगली चूहे (स्थानीय बोली में मुशे) एकत्रित हो रहे थे। यहीं से राजा का नाम ‘मुसान वर्मन ‘रखा गया।

पहले रानी ने एक ब्राह्मण के घर रहना आरम्भ किया। जब ब्राह्मण को उनकी सचाई पता चली तो उसने ब्राह्मण रानी और मुशान वर्मन को साथ सुकेत के राजा के पास ले गए। राजा ने मुशान वर्मन की शिक्षा-दीक्षा का भी उचित प्रबंध किया। जब वह बड़ा हुआ तो राजा ने अपनी पुत्री का विवाह उससे करा दिया। राजा ने उसे बहुत-सा धन तथा ‘पांगण परगना भी दहेज में दिया। उसे एक बड़ी सेना भी दी, जिसकी सहायता से उसने अपने राज्य ब्रह्मपुर से आक्रमणकारियों को मार भगाया और अपने राज्य को फिर से ब्रह्मपुर में स्थापित किया।मुसान वर्मन ने अपने शासनकाल में चूहों को मारने पर प्रतिबन्ध लगा दिया था। बहुत काल तक राज्य करने के बाद उसके उपरांतनिम्नलिखित अन्य ये राजा हुए- 1. हंस वर्मन 2.सार वर्मन 3. सेन वर्मन 4.सजन वर्मन

मृत्युंजय वर्मन :

इस राजा का नाम एक शिलालेख पर मिलता है। यह लेख धौलाधार ‘पैरोली रगाला’ स्थान पर है। वंशावली में इस राजा का नाम नहीं मिलता।

साहिल वर्मन (लगभग 920) :

चम्बा के राजाओं में यह सभी से प्रसिद्ध और प्रतापी राजा माना जाता है। इस राजा ने रावी की निचली घाटी को जीतकर अपने राज्य में मिला लिया और अपनी राजधानी को ब्रह्मपुर से स्थानांतरित कर आज के चम्बा नगर में स्थापित किया।

84 साधुओं के वरदान से राजा साहिल वर्मन के दस पुत्र और एक पुत्री हुई। इन साधुओं का नेता चरपटनाथ था। सबसे बड़े पुत्र का नाम युगांकर और पुत्री का नाम चम्पावती था। अपनी पुत्री चम्पावती के नाम पर उसने चम्बा शहर का नाम रखा। प्रसिद्ध इतिहासकार कवि कल्हण की पुस्तक राजतरंगिणी में इसका नाम ‘चम्पापुरी मिलता है।

साहिल वर्मन ने अपने कार्यकाल में तांबे की मुद्रा ‘चकली’ चलवाई। साहिल वर्मन की पत्नी रानी नैना देवी ने शहर में पानी की व्यवस्था के लिए अपने प्राणो का बलिदान दिया। तभी से रानी नैना देवी की याद में यहाँ प्रतिवर्ष सूही मेला मनाया जाता है। यह मेला महिलाओं और बच्चों के लिए प्रसिद्ध है।

साहिल वर्मन ने चम्बा में बहुत से मंदिर बनवाये। इनमें चन्द्रगुप्त (शिव) और कामेश्वर, चम्पावती देवी का मंदिर,

युगांकर वर्मन (940 ई.) :

इस राजा के काल के ताम्रपत्र मिले हैं जो सबसे पुराने माने जाते हैं। युगांकर वर्मन (940 ई.) की पत्नी त्रिभुवन रेखा देवी ने भरमौर में नरसिंह मंदिर का निर्माण करवाया। युगांकर वर्मन ने चम्बा में लक्ष्मी नारायण मंदिर के साथ ही गौरी शंकर का मंदिर भी बनवाया था। युगांकर वर्मन के बाद विदग्ध वर्मन , दुदका वर्मन , विचित्र वर्मन , धेरय वर्मन राजा हुए।

सलवाहन वर्मन (1040ई.)-

राजतरंगिणी के अनुसार कश्मीर के शासक अनन्तदेव ने भरमौर पर सलवाहन वर्मन के समय में आक्रमण किया था। सलवाहन वर्मन के कार्यकाल के शिलालेख मिले हैं जिससे तिस्सा परगना और सेइकोठी का उस समय बलार (बसौली) राज्य में होने का पता चलता है। सलवाहन वर्मन की मृत्यु अनन्त देव से लड़ते हुए हो गई थी। उसके बाद उसके पुत्र सोम वर्मन को राजा बनाया गया।

सोमवर्मन (1060 ई.) :

इस राजा का नाम वंशावली में नहीं मिलता है। इस राजा के दो ताम्र लेख मिलते हैं। इनमें से एक लेख तो केवल उसी का है जो उसने सूर्य ग्रहण के समय सन 1066 सितंबर मास में भूमि दान के साथ दिया था। एक दूसरा ताम्रपत्र लेख शिव और विष्णु के मंदिरों को भूमि दान के साथ दिया गया है।

अस्तुवर्मन (1080 ई.) :

यह सोम वर्मन का भाई था। राजतरंगिणी के अनुसार अस्तु वर्मन सन 1087-88 ई. में कश्मीर के राजा कलश (1063-89)को अपनी वफ़ादारी जताने के लिए गया हुआ था। अस्तु वर्मन की बहन वापिका का विवाह कलश से हुआ था और बाद में वापिका का पुत्र हर्ष कश्मीर का राजा बना।

जसाटा ( जयष्ट) वर्मन (1105 ई.) :

जसाटा वर्मन पांगी और चुराह के लौह टिकरी शिलालेख (11141. के समय के) के अनुसार 1105 ई. में राजा बना। पांगी और चुराह (तिस्मा) क्षेत्र उसके समय में चम्बा राज्य के भाग बन चुके थे। जसाटा वर्मन का उल्लेख 1112 ई. में राजतरंगिणी में भी मिला है। जसाटा वर्मन ने कश्मीर के राजा हर्ष की लाहार वंश के सुशाला के विरुद्ध सहायता की थी। पांगी शिलालेख के अनुसार जसाटा वर्मन ने 1105 ई. के दौरान लाहौल घाटी पर कब्जा बनाए रखा था।

धला वर्मन : यह जसाटा वर्मन (जयष्ट ) का भाई था और यह थोड़े ही समय तक राजा रहा।

उदयवर्मन (1120 ई.) :

उदयवर्मन ने कश्मीर के राजा सुशाला से अपनी दो पुत्रियों देवलेखा और तारालेखा का विवाह किया जो सुखाला की 1128 ई. में मृत्यु के बाद सती हो गई। इसके बाद अजीत वर्मन, देतयारी वर्मन और पृथ्वी वर्मन राजा बने। इनके बारे में अधिक जानकारी नहीं मिलती है।

ललित वर्मन (1143 ई.) :

ललित वर्मन के कार्यकाल के दो पत्थर लेख मिलते हैं। एक तो “देवी-री कोठी” शिलालेख है जिसे वहाँ के राणा नागपाल ने ललित वर्मन के सत्रहवें वर्ष (1160) में एक पनिहार पर लिखवाया था। दूसरा लेख सैचुनाला (पांगी) में प्राप्त हुए हैं, जिससे पता चलता है कि तिस्सा और पांगी क्षेत्र उसके कार्यकाल में चम्बा रियासत के भाग थे। पांगी शिलालेख (1170 ई.) सलाही के पास राणा लुद्रपाल ने ललित वर्मन के राज्य के सत्ताइसवें वर्ष में अंकित करवाया था। इन दोनों शिलालेखों में ललित वर्मन को ‘महाराजाधिराज’ लिखा हुआ था।

विजय वर्मन (1175 ई.) :

वंशावली के अनुसार यह राजा बड़ा वीर योद्धा और प्रजा में बड़ा लोकप्रिय था। विजय वर्मन ने मुहम्मद गौरी के 1191 ई. और 1192 ई. के आक्रमणों का फायदा उठाकर कश्मीर और लद्दाख के बहुत से क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया था।

गणेश वर्मन (1512 ई.) :

इस राजा के काल के दो लेख मिले हैं। गणेश वर्मन ने परगना मौथिला में एक गणेशगढ़ नाम का किला बनाया है। गणेश वर्मन ने चम्बा राज परिवार में सर्वप्रथम ‘सिंह’ उपाधि का प्रयोग किया था।

प्रताप सिंह वर्मन (1559 ई.)

1559 ई. में गणेश वर्मन की मृत्यु के बाद प्रताप सिंह वर्मन चम्बा का राजा बना। वह अकबर का समकालीन था। चम्बा से रिहलू क्षेत्र टोडरमल द्वारा मुगलों को दिया गया। प्रताप सिंह वर्मन ने काँगड़ा के राजा चंद्रपाल को हराकर गुलेर को चम्बा रियासत में मिला लिया था। रामपति गणेश वर्मन और प्रताप सिंह वर्मन का राजगुरु था। उसके कार्यकाल में मृकुला देवी की प्रतिमा उदयपुर-मृकुल में स्थापित की गई थी।

वीरवर्मन : इस राजा के कार्यकाल का कोई विशेष उल्लेख नहीं मिलता है।

बलभद्र (1589 ई.) एवं जनार्दन-

बलभद्र बहुत दयालु और दानवीर था। लोग उसे ‘बाली-कर्ण’ कहते थे। उसका पुत्र जनार्दन उन्हें गद्दी से हटाकर स्वयं गद्दी पर बैठा। जनार्दन के समय नूरपुर का राजा सूरजमल मुगलों से बचकर उसकी रियासत में छुपा था। सूरजमल के भाई जगत सिंह को मुगलों द्वारा काँगड़ा किले का रक्षक बनाया गया जो सूरजमल के बाद नूरपुर का राजा बना। जहाँगीर के 1622 ई. में कांगड़ा भ्रमण के दौरान चम्बा का राजा जनार्दन और उसका भाई जहाँगीर से मिलने गए। चम्बा के राजा जनार्दन और जगत सिंह के बीच धलोग में युद्ध हुआ जिसमें चम्बा की सेना को हार हुई। भिस्मबर, जनार्दन का भाई युद्ध में मारा गया।

जनार्दन को भी 1623 ई. में जगत सिंह ने धोखे से मरवा दिया। बलभद्र को चम्बा का पुनः राजा बनाया गया। परन्तु चम्बा 20 वर्षों तक जगत सिंह के कब्जे में रहा। जगत सिंह ने बलभद्र के पुत्र होने की स्थिति में उसकी हत्या करने का आदेश दिया था। बलभद्र को पृथ्वी सिंह नाम का पुत्र हुआ जिसको नर्स (दाई) बाटलू बचाकर मण्डी राजघराने तक पहुंच गई। उस समय मंडी में राजा हरिसेन का राज्य था।

पृथ्वी सिंह (1641 ई.) :

पृथ्वी सिंह युवा होने तक मंडी में ही था। जगत सिंह ने शाहजहाँ के विरुद्ध 1641 ई. में विद्रोह कर दिया। इस मौके का फायदा उठाते हुए पृथ्वी सिंह मण्डों और सुकेत की मदद से रोहतांग दर्रे, पांगी, चुराह को पार कर चम्बा पहुँचा। गुलेर के राजा मानसिंह जो जगत सिंह का शत्रु था उसने भी पृथ्वी सिंह को मदद की। पृथ्वी सिंह ने बसौली के राजा संग्राम पाल को भलेई तहसील देकर उससे गठबंधन किया। पृथ्वीसिंह ने अपना राज्य पाने के बाद चुराह और पांगी में राज अधिकारियों के लिए कोठी बनाई। पृथ्वी सिंह और संग्राम पाल के बीच भलेई तहसील को लेकर विवाद हुआ जिसे मुगलों ने सुलझाया।

भलेई को 1648 ई. में चम्बा को दे दिया गया। पृथ्वी सिंह मुगल बादशाह शाहजहाँ का समकालीन था। उसने शाहजहाँ के शासनकाल में 9 बार दिल्ली की यात्रा की और ‘रघुबीर’ की प्रतिमा शाहजहाँ द्वारा भेंट में प्राप्त की। चम्बा में खजीनाग (खजियार), हिडिम्बा मंदिर (मैहला) और सीताराम मंदिर (चम्बा) का निर्माण पृथ्वी सिंह की नर्स (दाई) बाटलू ने करवाया जिसने पृथ्वी सिंह के प्राणों की रक्षा की थी।

चतर सिंह (1660-1690 ई.) :

चतर सिंह ने बसौली पर आक्रमण कर वहाँ के राजा संग्रामपाल से भलेई परगना जीत लिया। चतर सिंह ने औरंगजेब के 1678 ई. के सभी हिन्दू मंदिरों को नष्ट करने का आदेश मानने से इंकार कर दिया और उल्टे मदिरों पर कलश चढ़ाए जो आज भी विद्यमान हैं। उसने अपने छोटे भाई शक्ति सिंह को औरगजेब से मिलने भेजा परंतु भी बजवाड़ा से वापिस लौट आया। चतर सिंह ने गुलेर के राज सिंह, बसौली के धीरजपाल और जम्मू के कृपाल देव के साथ मिलकर पंजाब के सूबेदार मिर्जा रियाजबेग को हराया।

उदय सिंह (1690-1720 ई.)

उगर सिंह (1720 ई.), दलेल सिंह (1735 ई.)-चतर सिंह के पुत्र राजा उदय सिंह ने अपने चाचा वजीर जय सिंह की मृत्यु के बाद एक नाई को उसकी पुत्री के प्रेम में पड़कर चम्बा का वजीर नियुक्त कर दिया। उदय सिंह के बाद 1720 ई. में जम्मू के सचा ध्रुवदेव की सहायता से उसका पुत्र उगर सिंह राजा बना। उगर सिंह के बाद उसका चचेरा भाई दलेल सिंह राजा बना।

उगर सिंह :

जम्मू के राजा उग्रसेन की सहायता से 1720 में उदय सिंह का पुत्र राजा बना। आरम्भ में तो अगर सिंह का शासन लोकप्रिय रहा , परन्तु बाद में लोग उस की कार्यप्रणाली से असंतुष्ट होते गए। उसकी मृत्यु काँगड़ा के ‘मसलमानी’ नामक गांव में 1735 ई. में हुई।

दलेल सिंह : उगर सिंह के बाद दलेल सिंह गद्दी पर बैठा। उसने उगर सिंह के दो पुत्रों उम्मेद सिंह और शेर सिंह को बंदी बनाया था।

उम्मेद सिंह (1748 )-

उम्मेद सिंह के शासन काल में चम्बा राज्य मण्डी की सीमा तक फैल गया। उम्मेद सिंह का पुत्र राज सिंह राजनगर में पैदा हुआ। उम्मेद सिंह ने राजनगर में ‘नाडा महल’ बनवाया। रंगमहल (चम्बा) की नींव भी उम्मेद सिंह ने रखी थी। उसने अपनी मृत्यु के बाद रानी के सती न होने का आदेश छोड़ रखा था। उम्मेद सिंह की 1764 ई. में युद्ध के दौरान ज्वालामुखी में मृत्यु हो गई।

राज सिंह (1764-94 ई.)

राज सिंह अपने पिता की मृत्यु के बाद 9 वर्ष की आयु में राजा बना। उस समय काँगड़ा का राजा घमण्ड चंद था। घमण्ड चंद ने पथियार को चम्बा से छीन लिया। परन्तु रानी ने जम्मू के रणजीत सिंह की मदद से इसे पुनः प्राप्त कर लिया। चम्बा के राजा राजसिंह और काँगड़ा के राजा संसार चंद के बीच रिहलू क्षेत्र पर कब्जे के लिए युद्ध हुआ।

राजा राज सिंह का विवाह भदरवाह के राजा संपतपाल की बेटी से हुआ। राजा राज सिंह की शाहपुर के पास 1794 ई. में युद्ध के दौरान मृत्यु हो गई। निक्का, रांझा, छन्जू और हरक राजसिंह के दरबार के निपुण कलाकार थे। चम्बा के राजा राजसिंह और कांगड़ा के राजा संसार चंद ने 1788 ई. में शाहपुर में संधि की थी।

जीत सिंह (1794 ई.) :

जीत सिंह 19 वर्ष की आयु में चम्बा की राजगद्दी पर बैठा। 1800 ई. में जीत सिंह ने बसौली पर अपना अधिकार बनाया। जीत सिंह के समय चम्बा राज्य ने नाथू वजीर को संसार चंद के खिलाफ युद्ध में सैनिकों के साथ भेजा। नाथू बजीर गोरखा अमर सिंह थापा, बिलासपुर के महान चंद आदि के अधीन युद्ध लड़ने गया था।

चढ़त सिंह ( 1808 ई.) :

जब जीत सिंह की मृत्यु हुई तो उस समय चढ़त सिंह की आयु 6 वर्ष की थी ,अत: राज काज का काम उसकी माता शारदा रानी ने स्वयं सम्भाला। नाथू बजीर राजकाज देखता था। रानी शारदा (चढ़त सिंह की माँ) ने 1825 ई. में राधा कृष्ण मंदिर की स्थापना की। पद्दर के राज अधिकारी रतनू ने 1820-25 ई. में जास्कर पर आक्रमण कर उसे चम्बा का भाग बनाया था। 1838 ई. में नाथू वजीर की मृत्यु के बाद ‘वजीर भागा’ चम्बा का वजीर नियुक्त किया गया।

1839 ई. में विने और जनरल कनिधम ने चम्बा की यात्रा को चढ़त सिंह की 42 वर्ष की आयु में 1844 ई. में मृत्यु हो गई। विग्ने चम्बा आने वाले प्रथम यूरोपियन थे। चम्बा में अंतिम बार सती प्रथा का पालन 1844 ई. में चढ़त (चरहट) सिंह की मृत्यु के समय किया गया। राजा के तीन पुत्र थे -श्री सिंह , गोपाल सिंह व सुचेत सिंह।

श्री सिंह ( 1844 ई.) :

आधुनिक चम्बा की शुरुआत श्री सिंह के राजा बनने से हुई। चढ़त सिंह की मृत्यु के बाद उसका सबसे बड़ा पुत्र श्री सिंह 5 वर्ष की आयु में गद्दी पर बैठा। श्री सिंह की माँ (कटाच राजकुमारी) अपने मंत्री वजीर भागा की सहायता से राज्य का कार्यभार चलाती थी। लक्कड़शाह (नारायणशाह) ब्राह्मण श्री सिंह के समय प्रशासन पर नियंत्रण किये हुए था उसने अपनी मुद्रा लकड़शाही भी चलाई। उसकी साहू घाटी के ‘बेलज’ में हत्या कर दी गई। अंग्रेज सिख युद्ध के बाद 9 मार्च, 1846 को संधि द्वारा व्यास और सतलुज के बीच के क्षेत्र अंग्रेजों को मिल गए। इसके बाद 16 मार्च, 1846 ई. की एक और संधि द्वारा रावी और सिंधु नदियों के बीच के क्षेत्र जम्मू के राजा गुलाब सिंह को देने का फैसला हुआ जिसका चम्बा ने विरोध किया क्योंकि वह भी इस क्षेत्र में आता था।

वजीर भागा के प्रयासों से सर हेनरी लॉरेंस ने चम्बा की स्वतंत्रता बनाये रखी बदले में भद्रवाह क्षेत्र गुलाब सिंह को दिया गया। चम्बा अग्रेजी शासन के आधिपत्य में आ गया जिस पर 12000 ₹ वार्षिक राज्यकर लगाया गया। 6 अप्रैल, 1848 ई. में अंग्रेजों ने श्री सिंह को सनद प्रदान की जिसके द्वारा चम्बा को उसे पीढ़ी-दर-पीढ़ी के लिए प्रदान किया। इस सनद में संतानहीन राजा के भाई को उत्तराधिकारी बनाने का प्रावधान था। वर्ष 1862 की सनद में राजा को गोद लेने का अधिकार भी दे दिया गया।

1857 ई. के विद्रोह में श्री सिंह ने अंग्रेजों का साथ दिया। उसने मियाँ अवतार सिंह के अधीन डल्हौजी में अंग्रेजों की सहायता के लिए सेना भेजी। वजीर भागा 1854 ई. में सेवानिवृत हो गया और उसका स्थान वजीर बिल्लू ने ले लिया। वर्ष 1863 ई. को राजा श्री सिंह की प्रशासन में मदद के लिए मेजर ब्लेयर रीड को चम्बा का प्रबंधक (सुपरिन्टेन्डेन्ट) नियुक्त किया गया।

मेजर ब्लेयर रीड ने पी.डब्ल्यू.डी. विभाग स्थापित कर चम्बा को दुर्गम क्षेत्रों से जोड़ा। चम्वा और खजियार में डाक बंगले और राजा के लिए जदरीघाट में 1870-71 ई. में एक महल बनवाया गया। चम्बा में 1863 ई. में एक डाकघर खोला गया। चम्बा में एक स्कूल खोला गया। वर्ष 1864 ई. में चम्बा की वन सम्पदा 99 वर्ष के लिए पट्टे पर अंग्रेजों को दे दी गई जिससे 22 हजार रुपये वार्षिक आय होने लगी। वर्ष 1866 ई. में चम्बा में एक अस्पताल खोला गया। वर्ष 1870 ई. में 32 वर्ष की आयु में श्री सिंह की मृत्यु हो गई। श्री सिंह का कोई पुत्र नहीं था अत: 1848 ई. की सनद द्वारा उसके छोटे भाई गोपाल सिंह को 1870 ई. में मेजर ब्लेयर रीड ने गद्दी पर बैठाया।

गोपाल सिंह (1870 ई.) :

श्री सिंह का कोई पुत्र नहीं था। अत: श्री सिंह का भाई गोपाल सिंह गद्दी पर बैठा। गोपाल सिंह के समय में भी मेजर रीड ही राजनीतिक अधिकारी रहा। उसने शहर की सुंदरता बढ़ाने के लिए कई काम किए। उसके कार्यकाल में 1871 ई. में लाई मायो चम्बा आए। गोपाल सिंह के तीन पुत्र थे : शाम सिंह , भूरी सिंह ,और प्रताप सिंह। गोपाल सिंह को गद्दी से हटा 1873 ई. में उसके बड़े बेटे शाम सिंह को राजा बनाया गया।

शाम सिंह (1873 ई.)

शाम सिंह का जन्म 1966 में हुआ था। शाम सिंह को सात वर्ष की आयु में अमृतसर के कमीशनर जनरल रेनल टायलर ने चम्बा आकर 17 अक्टूबर, 1873 ई. को गद्दी पर बैठाया। शाम सिंह के समय कर्नल ब्लेयर रीड (1874-77), आर.टी. वरनी (1877-78) और कैप्टन सी.एच.टी. मार्शल (1879-1885) सुपरिन्टेन्डेन्ट थे।

मियाँ अवतार सिंह (1873-78), गोविंदचंद (1885-98) तथा मियाँ भूरी सिंह (1890-1904) दीवान/वजीर थे। शाम सिंह के समय जनरल रेनल टायलर (1873), सर हेनरी डेविस (लेफ्टिनेंट गवर्नर, पंजाब, 1874 ई.) वायसराय लार्ड कर्जन एवं लेडो कर्जन (1900 ई), सर मेकवर्थ यंग (लेफ्टिनेंट गवर्नर, पंजाब, 1901 ई.) ने चम्बा की यात्रा की।

शाम सिंह ने 1876 में इम्पीरियल दरबार तथा 1877 में दिल्ली दरबार में भाग लिया। कर्नल रीड ने 1876 ई. में पहली बार चम्बा लैण्ड रेवेन्यू सैटलमेर (भूमि बंदोबस्त) करवाया। वर्ष 1894 में पंजाब सरकार को वनों की आय का 2/3 चम्बा देने का फैसला हुआ।

वर्ष 1878 ई. में जान हैरी को शाम सिंह का शिक्षक नियुक्त किया गया। चम्बा के महल में दरबार हॉल को C.H.T. मार्शल के नाम पर जोड़ा गया। वर्ष 1880 ई. में चम्बा में हाप्स की खेती शुरू हुई। सर चार्ल्स एटिक्सन ने 1883 ई. में चम्बा की यात्रा की। वर्ष 1887 ई. को चम्बा डाक विभाग को भारतीय डाक तार विभाग से जोड़ा गया। 1881 ई. में तिस्सा में एक डिस्पेन्सरी खोली गई।

1875 ई. में कर्नल रोड के अस्पताल को तोड़कर 1891 ई. में 40 बिस्तरों का शाम सिंह अस्पताल बनाया गया। रावी नदी पर शीतला पुल जो 1894 ई. की बाढ़ में टूट गया था की जगह 1895 में लोहे का सस्पेंशन पुल बनाया गया। 1895 ई. में भटियात में विद्रोह हुआ। शाम सिंह के छोटे भाई मियाँ भूरी सिंह को 1898 ई. में वजीर बनाया गया। 1902 1. में शाम सिंह बीमार पड़ गए। वर्ष 1904 ई. में भूरी सिंह को चम्बा का राजा बनाया गया।

राजा भूरी सिंह (1904 ई.):

12 अक्टूबर, 1904 ई. को पंजाब के लेफ्टिनेंट गवर्नर सर चार्ल्स रिवाज ने भूरी सिंह को गद्दी पर बिठाया। भूरि सिंह अपने भाई शाम सिंह के समय 7 वर्ष तक दीवान/वजीर रहे थे। वर्ष 1906 ई. में उन्हें K.CLS. (नाईटहुड) की उपाधि प्रदान की गई। वर्ष 1908 ई. में सरकार ने वनों को पाँच वर्ष के लिए चम्बा को वापिस दे दिया।

1905 ई. में मिडिल स्कूल को बढ़ाकर हाई स्कूल कर दिया। वर्ष 1908 में ‘भूरी सिंह संग्रहालय ‘ डॉ फोगल के नेतृत्च में खोला गया और उसी ने चम्बा का पुरातात्विक सर्वेक्षण भी किया। 1910 ई. में चम्बा नगर में पानी और बिजली का पहली बार प्रबंध किया गया। चम्बा में पुस्तकालय तथा वाचनालय खोला गया। राजा भूरी सिंह ने प्रथम विश्व युद्ध में अंग्रेजों की सहायता की थी।, जिसके बदले उनको (KEIE ) की उपाधि दी गई थी। 18 सितम्बर , 1919 ई. में राजा भूरीसिंह की मृत्यु हुई।

राम सिंह (1919 ई.) :

राम सिंह को पंजाब के गवर्नर एडवर्ड मैक्लेगन (KCSI) ने मार्च 1920 ई. को चम्बा आकर गद्दी पर बैठाया और राज्य के पूर्ण प्रशासनिक अधिकार प्रदान किए। राय बहादुर लाला माधो राम को राजकुमार राम सिंह का निजी सचिव नियुक्त किया गया तथा बाद में मुख्य सचिव बनाया गया। राजा ने चम्बा में 15 नए स्कूल खोले गए तथा शारीरिक शिक्षा को भी पाठ्यक्रम में शामिल किया गया।

राजा राम सिंह को राज -काज का प्रशिक्षण देने हेतु मिस्टर ई. एम. एटकिंसन को नियुक्त किया गया। चम्बा -नूरपुर रोड़ को पुन: निर्मित कर राज्य की सीमा तक इसे बढ़ाया गया। चम्बा -भरमौर सड़क को 20 मील तक बनाया गया तथा फिर नदी पर अस्थाई पुल बनाकर कियानी तक इसे पूरा किया गया। चम्बा जिला की मल निकासी व्यवस्था को सुधारा गया। पीने के पानी की पूर्ति हेतु एक बड़ा टैंक निर्मिंत किया। दिसंबर 7,1935 ई. को राजा राम सिंह ने लाहौर में प्राण त्याग दिए।

लक्ष्मण सिंह (1935 ई.) :

राम सिंह का पुत्र लक्ष्मण सिंह 11 वर्ष की आयु में राजा बना। अत: उसकी बाल्यावस्था में प्रशासन को चलाने के लिए एक तीन सदस्यीय कॉउंसलिंग ऑफ़ एडमिनिस्ट्रेशन नियुक्त की गई। इस कॉउन्सिल के अध्यक्ष मेजर तालनीम थे।

1945 ई. में राजा लक्ष्मण सिंह को राज्य के पूर्ण अधिकार मिले। सन 1948 ई. में चम्बा रियासत को हिमाचल प्रदेश प्रान्त में शामिल कर दिया गया।

Brief History of Chamba District – Himachal Pradesh

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