Important Questions for HPS Allied Services Main – VIII

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1.राज्य पुनर्गठन आयोग वह इसकी हिमाचल के संबंध में सिफारिशों पर संक्षिप्त नोट लिखें।
Write a short note on state re-organisation Commission and its recommendation regarding Himachal Pradesh (4 marks, 60 words)

उतर:- वर्ष 1953 में राज्यों के पुनर्गठन के लिए फाजिल अली की अध्यक्षता में राज्य पुनर्गठन आयोग की स्थापना की गई। इस आयोग के तीन सदस्य – न्यायमूर्ति फजल अली, हृदयनाथ कुंजरू और केएम पाणिक्कर थे।
आयोग के सदस्यों ने हिमाचल को पंजाब में मिलाने की सिफारिश की थी लेकिन आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति फाजिल अली की सिफारिश पर हिमाचल को अलग से केंद्र शासित प्रदेश बनाएं रखना स्वीकार किया गया और इस संबंध में 1956 में केंद्र सरकार द्वारा प्रस्ताव पारित कर हिमाचल को केंद्र शासित प्रदेश बनया गया।

2.हालिया विधानसभा और संसदीय चुनावों में राजनीतिक पार्टियों के हिमाचल में प्रदर्शन पर एक संक्षिप्त नोट लिखें।
Write a short note on performance of political parties in recent Assembly and Parliamentary election in Himachal Pradesh. (4 marks, 60 words)

उतर:- हालिया विधानसभा चुनाव 2017 और लोक चुनाव 2019 मैं राजनीतिक पार्टियों का प्रदर्शन रहा है:-
1.राज्य विधानसभा चुनावों में बीजेपी को 48% जबकि कांग्रेस को 41% मत पड़े हैं अन्य सभी पार्टियों एवं निर्दलीय सदस्यों को करीब 10% वोट मिले हैं। बीजेपी को 44 सीटे, कांग्रेस को 21 व सीपीएम को 1 सीट प्राप्त हुई है।
2.हालिया लोकसभा चुनाव 2019 में हिमाचल में सभी चारों सीटें बीजेपी ने जीती है। वर्तमान में राज्यसभा में 2 सदस्य कांग्रेस के जबकि एक बीजेपी का है।

3.हिमाचल की राजनीति में दबाव समूहों का उभार कैसे हुआ है।
How has the pressure group emerged in political system of Himachal Pradesh? (4 marks, 60 words) (HPAS MAINS 2018)

उतर:-अपने सामूहिक हितों की पूर्ति के लिए राज्य में अलग-अलग क्षेत्रों में दबाव समूहों का उभार हुआ। सेब उत्पादन से जुड़े मुद्दों को लेकर बागबानी क्षेत्र में सेब उत्पादक संघ 1980 में अस्तित्व में आया।छात्र राजनीति से छात्र संगठन एसएफआई, एबीवीपी, एनएसयूआई, 80 के दशक में दबाव समूह के रूप में उभरे। राज्य में औद्योगिक कारखानों की स्थापना से मजदूर संगठन सीटू, इंटक व भारतीय मजदूर संघ का राज्य में उभार हुआ। धार्मिक और जातीय हितों से जुड़े मुद्दों को लेकर अखिल भारतीय राजपूत संघ, ब्राह्मण सभा, दलित महासंघ, कर्मचारियों के हितों को लेकर कर्मचारी महासंघ आदि का दबाव समूह के रुप में उभार हुआ।

4.हिमाचल प्रशासनिक अधिकरण पर एक संक्षिप्त नोट लिखें।
Write a short note on Himachal Pradesh Administrative Tribunal. (4 marks, 60 words)

उतर:- एक अर्ध-न्यायिक निकाय के रूप में राज्य में प्रशासनिक अधिकरण की स्थापना 1986 में की गई थी। इसकी स्थापना का मुख्य लक्ष्य सार्वजनिक सेवाओं में लगे कर्मचारियों व अधिकारियों की नियुक्ति तथा सेवा शर्तों संबंधी शिकायतों की सुनवाई करना था। ताकि सभी सरकारी कर्मचारियों को समय रहते न्याय मिल सके व उच्च न्यायालय पर कर्मचारियों के केसों के भार को कम किया जा सके। वर्तमान में कुछ प्रशासनिक कारणों से सरकार ने इसे रद्द करने का निर्णय लिया है।

5.हिमाचल प्रदेश के संदर्भ में उप-क्षेत्रवाद से आप क्या समझते हैं? यह कैसे राज्य की राजनीति को प्रभावित करता है? चर्चा करें।
What do you understand by sub regionalism in context of Himachal Pradesh. How does it influence politics of state. Discuss. (8 marks, 120 words)

उतर:- किसी बड़े क्षेत्र की सीमाओं के अंदर स्थित एक छोटे से क्षेत्र को उप क्षेत्र कहा जाता है। इस उप क्षेत्र में स्थित लोग जब अपनी भावनाओं और आवश्यकताओं के अनुसार खुद को बाकी क्षेत्रों से से अलग मनाते है तो इसे उप-क्षेत्रवाद कहा जाता है। इसके आधार सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक, राजनैतिक, भौगोलिक, सांस्कृतिक व जातिय हो सकते हैं। हिमाचल के संदर्भ में पुराना व नया हिमाचल, पहाड़ी व मैदानी हिमाचल, शहरी व ग्रामीण हिमाचल के आधार पर क्षेत्रवाद देखा जा सकता है। जाति व जनजाति आधार पर भी क्षेत्रवाद देखा जा सकता है।
उप-क्षेत्रवाद के राज्य की राजनीति पर प्रभाव:-
यह राज्य की राजनीति को नकारात्मक तथा सकारात्मक दोनों पक्षों में प्रभावित करता है।
प्रत्येक क्षेत्र की अपनी अपनी समस्याएं होती हैं, इससे क्षेत्र विशेष के मुद्दे सामने उभर कर आते हैं जिससे विकासात्मक कार्यों को गती मिलती है।
वहीं दूसरी तरफ इससे अलगाववाद की भावना भी पनपती है। एक तरफ जहां किसी क्षेत्र विशेष को महत्व देने से दूसरे क्षेत्र के लोगों में सरकार के प्रति नाराजगी पैदा होती है, वहीं दूसरी तरफ विकास और प्रतिस्पर्धा का भी एक मुद्दा बन जाता है। एक तरफ जहां अनुसूचित जातियों और जनजातियों की अपनी समस्याएं हैं वही उच जातियों की भी बहुत सी मांगे सरकार से रहती हैं। इन्हीं मांगों का नतीजा है कि सरकार ने अनुसूचित जनजातियों के लिए जनजातीय उपयोजना, अनुसूचित जातियों के लिए कई क्षेत्रों में विशेष रियायत दी है। एक तरफ जहां कमजोर तबकों का इससे विकास होता है वहीं समाज में जातिय व वर्ग संघर्ष भी बड़ जाता है।
सामाजिक सद्भाव बना रहे इसके लिए जरूरी है कि उप क्षेत्रवाद की जड़ें ज्यादा गहरी ना हो यह विकासात्मक मुद्दों तक ही सीमित रहे, यही प्रदेश की भलाई के लिए अच्छा है।

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