History of Himachal Pradesh – HPSAS/HPAS Mains
आरम्भिक मध्यकालीन राज्यों का उद्भव एवं विकास: कांगड़ा, कुल्लू और चंबा
- किस तरह से आरंभिक मध्यकालीन राज्य कांगड़ा, कुल्लू और चंबा अस्तित्व में आए? इनके ऐतिहासिक स्रोतों का उल्लेख करते हुए इनके उद्भव एवं विकास को विस्तार से समझाएं?
How early medieval states Kangra Kullu and Chamba came into existence? Describing their historical sources, discuss in detail their emergence and growth. (20 marks, 400 words)
व्याख्या :- जैसे-जैसे मानव सभ्यताएं विकास की ओर आगे बढ़ी वैसे-वैसे एक संगठित शासन स्थापित करने के लिए राजाओं का शासन तंत्र विकसित हुआ।प्राचीन समय से ही भारत में कई छोटे-बड़े राज्य अस्तित्व में आए और इनका विकास लगातार होता रहा। इस तरह के कुछ राज्य हिमाचल में भी ईसा पूर्व की शताब्दियों में अस्तित्व में आए जिनमें कांगड़ा, कुल्लू और चंबा शामिल थे। इनका उद्भव एवं विकास कैसे हुआ यह जानने के लिए इतिहासकारों ने कई ऐतिहासिक स्रोतों को आधार बनाकर इसे कलम-बद्ध करने की कोशिश की। सदियों पूर्व जब ये राज्य अस्तित्व में आए, तब एक तो लेखन शैली इतनी अधिक विकासित नहीं थी, दूसरा, क्योंकि यह राज्य बहुत छोटे थे, इसलिए इनके ऐतिहासिक स्त्रोत भी ज्यादा नहीं बच पाए। हालांकि इन राज्यों की वंशावलीयां भी है, जिनमें राजाओं के नाम लिखे गए हैं, लेकिन यह ईसा के बाद की शताब्दियों की हैं। अतः साफ तौर पर यह समझा जा सकता है, कि कितना मुशिकल था यह इतिहासकारों के लिए भी कह पाना, कि वास्तव में कब यह राज्य अस्तित्व में आए और कैसे इनका क्रमिक विकास हुआ। लेकिन फिर भी कुछ ऐतिहासिक स्रोतों जैसे, साहित्यिक सामग्री, अभीलेखों, वंशावलीयों, सिक्कों, विदेशी यात्रियों के वृतांतो एवं प्राचीन इमारतों एवं स्मारकों से यह जानना संभव हो पाया है।
ईसा से छठी और चौथी शताब्दी पूर्व में भारत में 16 महाजनपद अस्तित्व में आए जिन में मगध भी एक था। इनमे अधिकतर गणतंत्र पद्धति पर आधारित थे और राजाओं का चुनाव जनता द्वारा होता था। इसी तरह के 4 जनपदों का जिक्र हिमाचल के संदर्भ में पाणिनि ने अपनी रचना ‘अष्टाध्याई’ में किया है। ये जनपद थे :-
- त्रिगर्त:काँगड़ा
- कुल्लुत: कुल्लू
- औदुम्बर: पठानकोट और नूरपुर के आसपास का क्षेत्र
- कुलिंद/ कुनिद: सिरमौर के आसपास का क्षेत्र
इसके अलावा पानीणी ने ग्ब्तिका शब्द का इस्तेमाल चंबा के लिए किया। जबकि युगांधर बिलासपुर और नालागढ़ के आसपास के क्षेत्र के लिए किया।
कांगड़ा(त्रिगर्त) के ऐतिहासिक स्रोत-:
- कांगड़ा के साहित्यिक स्रोतों में वेद, पुराण, महाभारत, बृहद संहिता, अष्टाध्याई, मुद्राराक्षस, राजतरंगिणी, तारीख ए फिरोजशाही, रघुवंशम, आईन-ए- अकबरी, तारीख ए फरिश्ता, तारीख ए फिरोजशाही, तुजक-ए-जहांगीरी तुजक-ए-तैमूरी और वंशावलीयां आदि शामिल है। इन सभी रचनाओं में कांगड़ा राज्य का अलग-अलग नामों से उल्लेख हुआ है, जिनमें त्रिगर्त, जालंधर, भीमकोट नगरकोट आदि नाम शामिल है। पाणिनि ने इसे ‘षष्ट यायुधाजीवी संघ’ की संज्ञा दी है।
- पुरातात्विक स्रोतों में ब्राह्मी और खरोष्ठी लिपिओं मे लिखित पठियारा और खनियारा के शिलालेख, हरिसेंन द्वारा लिखित इलाहाबाद का सितम्भ लेख, चड़ी और चेत्ररू में मिले बौद्ध स्तूप, सिरसा और बानगंगा की नदि घाटियो में मिले कुछ पौराणिक औजार, कनिष्क कालीन सिक्के एवम कुछ प्राचीन इमारतें और स्मारक आदि शामिल है।
- विदेशी यात्रियों में, चीनी यात्री ह्युन सॉन्ग ने अपनी रचना ‘सी-यू-की’ में कांगड़ा राज्य का जिक्र किया है। इसके इलावा यूरोपियन यात्रियों में थॉमस कोरियात, फ्रांसीसी बर्नियर, फोस्टर, विलियम मूरक्राफ्ट, विलियम फिंच, बायन, थॉमसन और अलेक्जेंडर कनिंघम आदि ने भी अपने यात्रा वृतांतों में कांगड़ा का जिक्र किया है। तुगलक वंश के दरबारी इतिहासकार उत्तबी व फरिश्ता के भी संस्मरण लिखो में कांगड़ा राज्य का उल्लेख हुआ है।
कांगड़ा का उद्भव एवं विकास :-
कांगड़ा कब अस्तित्व में आया इस बारे में स्पष्ट उल्लेख नहीं है। लेकिन प्राचीन साहित्यिक स्रोतों में इसका उलेख होने से निश्चित तौर पर यह कह सकते हैं कि इसकी स्थापना ईसा से पूर्व शताब्दियों में हुई होगी होगी। क्योंकि इसका वेदों में उल्लेख हुआ है तो यह माना जा सकता है कि इसकी स्थापना वैदिक काल में या इससे पहले हुई होगी। पाणिनि कि अष्टाध्याई भी 700 ईसवी पूर्व में लिखी गई थी और महाभारत का काल भी 1200 ईसवी पूर्व माना जाता है। इससे निश्चित तौर पर यह कहा जा सकता है कि इस राज्य की स्थापना 1500 से 700 ईसवी पूर्व के बीच में हुई होगी। लेकिन एक सामान्य अवधारणा के अनुसार यह माना जाता है कि इसकी स्थापना मुल्तान से आए भूमि चंद्र ने की थी। इसी पीढ़ी का 234 बा राजा सुशर्मा चंद्र हुआ जिसका उल्लेख महाभारत में हुआ है।अतः एक बात स्पष्ट है कि कांगड़ा पहाड़ी राज्यों में सबसे प्राचीन रियासत थी। इसे त्रिगर्त के नाम से जाना जाता था। यह नाम इसे तीन नदियों के मध्य स्थित होने के कारण दिया गया था। इसके मैदानी भागों को जालंधर कहा जाता था। इस पर हेमचंद्र लिखते हैं ‘जालंधरासित्रिगर्त:’ यानी जालंधर ही त्रिगर्त है। अपने उद्भव के बाद यह राज्य लगातार विस्तारित होता रहा और विकास क्रम में आगे बढ़ता रहा। इसके उद्भव एवं विकास में अनेक राजाओं की महत्वपूर्ण भूमिका रही जिनमें संसार चंद द्वितीय का नाम सबसे अहम है। इसी राजा के शासन काल में यह राज्य अपने विकास के शिखर पर पहुंचा इसकी सीमाएं विस्तारित हुई और पहाड़ों में कला एवं साहित्य का भी काफी विकास हुआ।
कुल्लू(कुल्लुत)के ऐतिहासिक स्रोत-:
- कुल्लू के साहित्यिक स्रोतों में पुराण, महाभारत, बृहद संहिता, अष्टाध्याई, कत्रेयादी गण, मुद्राराक्षस, कादंबरी, राजतरंगिणी, वंशावलीयां और तिब्बतियन साहित्य आदि शामिल है। इन सभी रचनाओं में कुल्लू राज्य का उल्लेख हुआ है। पाणिनि ने इसे कुलुत की संज्ञा दी है। विशाखदत्त द्वारा लिखित नाटक ‘मुद्राराक्षस’ में कुल्लू के राजा चंद्र वर्मा के चंद्रगुप्त के साथ हुए युद्ध का जिक्र हुआ है। महाभारत में कुल्लू के राजा पर्वतईश्वर का उल्लेख हुआ है। पाणिनि की रचना कत्रेयादी गण में नगर को कुल्लू की राजधानी बताया गया है।
- पुरातात्विक स्रोतों में सातवीं सदी में जारी की गई निरमंड ताम्रपत्र, कुल्लू के राजा वीर्यश द्वारा जारी किए गए तांबे के सिक्के और अशोक कालीन बौद्ध स्तूप के अवशेष आदि शामिल है।
- विदेशी यात्रियों में, चीनी यात्री ह्युन सॉन्ग ने अपनी रचना ‘सी-यू-की’ में कुल्लूत राज्य का जिक्र किया है। इसके इलावा मन्झिं बौध भिक्षु के संस्मरण लिखो में कुलुत राज्य का उल्लेख हुआ है।यूरोपियन यात्रियों में विलियम मूरक्राफ्ट के यात्रा वृत्तांत में कुल्लू राज्य का उल्लेख हुआ है।
कुल्लू का उद्भव एवं विकास :-
कुल्लू कांगड़ा के पश्चात हिमाचल की सबसे प्राचीन रियासत थी। इसका उद्भव ईसा पूर्व की सदी में महाभारत काल में हो चुका था। राज्य की वंशावली के अनुसार इसके संस्थापक व्यंगमणिपाल थे, जो प्रयाग मायापुरी के रहने वाले थे।विष्णु पुराण, रामायण और महाभारत में भी कुल्लू को व्यास नदी के किनारे बसा बताया है। लोक कथाओं के अनुसार इसे ‘कुलन्तपीठ’ कहा जाता था इसका अर्थ है निवास योग्य अंतिम स्थान। यानी यह माना जा सकता है कि कुल्लू ऐसी जगह पर बसा था जहां से आगे मानव सभ्यता वास नहीं करती थी।अतः यह कहा जा सकता है कि इसका विस्तार एक सीमित क्षेत्र तक ही था। पाणिनी के अनुसार इस राज्य की राजधानी नगर थी जो समय-समय पर बदलती रही और यहां के शासक कभी नगर, कभी जगतसुख तो कभी सुल्तानपुर से शासन करते रहे। राजा जगत सिंह के शासनकाल में राज्य विकास के शिखर पर पहुंचा। राजा बहादुर सिंह और मानसिंह भी इस रियासत के प्रतापी शासक हुए।
चम्बा के ऐतिहासिक स्रोत-:
- चम्बा के साहित्यिक स्रोतों में पाणिनी की अष्टाध्याई, कल्हन द्वारा लिखित राजतरंगिणी, वंशावली और कुछ प्राचीन पांडुलिपियां आदि शामिल है जिनमे चम्बा राज्य का उल्लेख हुआ है।
- पुरातात्विक स्रोतों में साहिल वर्मन द्वारा जारी किया की गया चकली सिक्का, लौह टिकरी में मिले जसाटा बर्मन के शिलालेख, लक्कड़ शाही सिक्का, गुप्तकालीन तांबे के सिक्के, प्राचीन इमारतें और स्मारक तथा कुछ प्राचीन मंदिर आदि शामिल है।
- विदेशी यात्रियों में, यूरोपियन इतिहासकार कनिंघम के यात्रा वृतांत वह शोध पत्र शामिल है।
चम्बा का उद्भव एवं विकास:-
पाणिनी ने अपनी रचना में चंबा के लिए ‘ग्ब्तिका’ शब्द का इस्तेमाल किया है जिससे यह अनुमान लगाया जा सकता कि ईसा से पूर्व की शताब्दियों में ही यहां मनुष्य का बास रहा था। इससे चंबा रियासत का अस्तित्व भी काफी प्राचीन प्रतित होता है। लेकिन वंशावली के अनुसार इसकी स्थापना स्थापना छठी सदी में प्रयाग से आए मारू द्वारा की गई थी, इसी बात का उल्लेख कलहन ने अपनी रचना ‘राजतरंगिणी’ में भी किया है।
मारू ने वर्तमान भरमौर में ब्रह्मपुर नाम से इसकी राजधानी की स्थापना की थी। बाद में इसे 10 वीं सदी में साहिल बर्मन द्वारा चंबा स्थानांतरित किया गया था। साहिल वर्मन की बेटी, चंपावती के नाम पर ही इस रियासत का नाम चंबा पड़ा था। तत्पश्चात अलग-अलग राजाओं के शासनकाल में चंबा 20वीं सदी तक विकास की राह पर आगे बढ़ता रहा। यह रियासत मुस्लिम आक्रमणों से भी बची रही, इसलिए इसके ऐतिहासिक स्मारक भी बचे रहें। चंबा के उद्भव से लेकर इसकी विकास यात्रा में कई राजाओं का सहयोग रहा जिसमें उमेद सिंह कला एवं साहित्य के क्षेत्र में काफी कार्य करने के लिए प्रसिद्ध रहे। राज सिंह ने चित्रकला को बढ़ावा दिया, श्री सिंह ने जन हित के कार्य किए और सबसे अहम बात आती है भूरी सिंह की जिन्होंने जनहित के बहुत से कार्य किए जिसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क निर्माण और बिजली उत्पादन आदि शमिल है।
निष्कर्ष :-
इतिहासकारों ने कई ऐतिहासिक स्रोतों को आधार बनाकर इन राज्यों के अस्तित्व में आने के इतिहास को जानने की कोशिश की है और एक अनुमान के अनुसार इनकी स्थापना और इनके विकास की श्रृंखला को बताया है।लेकिन साहित्यिक स्रोतों का इसमें अभाव होने के कारण यह बता पाना बहुत मुश्किल था कि कैसे ये अस्तित्व में आए और इनके अस्तित्व में आने से पहले यहां लोगों की क्या स्थिति थी, कैसे इन्होंने लोगों को अपने नियंत्रण में लाया। लेकिन एक बात साफ तौर पर कही जा सकती है कि ये राज्य काफी पहले अस्तित्व में आ चुके थे और संस्थापक बाहर से आकर यहां बसे थे, और 20वीं सदी में हिमाचल की स्थापना होने तक इन्होंने अपना अस्तित्व बनाए रखा।
History of Himachal Pradesh – HPSAS/HPAS Mains
इसे भी पढ़ें : हिमाचल का इतिहास
- HPPSC Shimla All Notification -15 May 2024
- HPU Shimla All Notification -15 May 2024
- IDBI Chief Information Security Officer Recruitment 2024 -Apply Online
- Educational Psychology & Pedagogy For HP TET/CTET Part-23
- HPU Shimla All Notification -14 May 2024