कुनिहार- ठियोग-नालागढ़ के जन आन्दोलन
कुनिहार में किसान आन्दोलन
1920 ई. में कुनिहार रियासत में किसानों ने प्रशासन के अत्याचारों के विरोध में आन्दोलन किया। लोगों ने राणा के विरुद्ध आवाज उठाई। रियासती सरकार ने अंग्रेजों की सहायता से इस आन्दोलन को दबा दिया ओर इसे उकसाने वालों को जेल में बंद कर दिया। 1921 ई. में कुनिहार के बाबू कांशीराम और कोटगढ़ के सत्यानंद स्टोक्स ने पहाड़ी रियासतों में बेगार के विरुद्ध आवाज उठाई। सत्यानंद स्टोक्स ने बेगार प्रथा के विरुद्ध सारी पहाड़ी रियासतों में आंदोलन चलाया। लोगों में इसके लिए जागृति पैदा करने के लिए उन्होंने कई लेख लिखे। तथा स्थान -स्थान पर सम्मलेन किए। सन 1921 ई. में स्टोक्स ने बुशहर रियासत की राजधानी रामपुर में भी एक सम्मेलन किया। इसके पश्चात् बुशहर के राजा पद्म सिंह ( 1914 – 1947 ) ने रियासत में बेगार प्रथा समाप्त करने का आश्वासन दिया।
ठियोग आंदोलन
1926 को अक्तूबर मास में ठियोग ठकुराई में राणा पदमचंद के प्रशासन के विरुद्ध जनता ने आंदोलन किया। इसका नेता उसी का भाई मियां खड़क सिंह था। परन्तु बाद में यह आंदोलन शिथिल पड़ता गया और खड़क सिंह अपने परिवार सहित खनेटी ठकुराई में जाकर बस गया। 1927 ई. में फिर मियां खड़क सिंह ने खनेटी से ही आंदोलन को चलाया। इस बार इसमें राणा के पुत्र कर्मचंद और राजमाता ने भी खुले रूप में जनता का साथ दिया। इस आंदोलन को दबाने के लिए राणा ने अंग्रेज सरकार से सहायता मांगी। अत: डिप्टी कमिशनर सलिसबरी ने शिमला से पुलिस ठियोग भेजी। पुलिस ने मियां खड़क सिंह को गिरप्तार किया और लोगों को तितर-बितर कर दिया। दूसरे मुख्य आंदोलनकारी लब्धुराम ,गारू राम ,टीका कर्म चंद आदि पर कड़ी निगरानी रखी गई
नालागढ़ जन आंदोलन
राजा ईश्वर सिंह जून ,1877 में गद्दी पर बैठा। उसके समय में गुलाम कादिर खान वजीर था। उसने इस राजा के शासन संभालते ही प्रजा पर कर लगाए और भूमि लगान बढ़ा दिए। लोगों में रोष बढ़ गया और उन्होंने लगान देने से साफ़ इंकार कर दिया। लोगों ने सभाएं की और जुलुस निकाले। लोगों ने कर्मचारी के काम में बाधा डालनी आरम्भ की। अशांति और गड़बड़ी की स्थिति में अंग्रेज सरकार ने हस्तक्षेप किया। शिमला में सुपरिंटेंडेंट हिल स्टेट्स स्वयं पुलिस दल लेकर नालागढ़ पहुँचे। जन आंदोलन का दमन करके उसके नेता को पकड़ लिया और भीड़ को भगा दिया। लोगों ने अपनी माँगे मनवा लीं और राजा ने अंत में वजीर को निकाल दिया और लगान कम कर दिया।
1918 ई. में नालागढ़ के पहाड़ी क्षेत्रों में चरागाह तथा वन संबंधी कानूनों के विरोध में जन आंदोलन हुआ। राजा जोगिंद्र सिंह तथा उसका वजीर चौधरी राम जी लाल इस आंदोलन को दबा न सके। अंत में अंग्रेज सरकार ने अपनी सेना भेजकर आंदोलन को दबा दिया। सक्रिय आंदोलनकारियों को जेल में डाल दिया। इसके पश्चात् लोगों ने रियासती सरकार से असहयोग की नीति अपनाई। विवश होकर सरकार ने लोगों की शिकायते दूर कर दीं और कानून बदल दिए। इस प्रकार वहाँ शांति -व्यवस्था स्थापित हो गई।
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