Bhunda Festival of Nirmand District Kullu
भारत में पहले नर बलि की प्रथा थी। भूण्डा भी नर बलि का त्यौहार है। कुल्लू जिला में इसे ‘बला’ (भीतरी सिराज) तथा निरमण्ड (बाहरी सिराज) में प्रमुख रूप से मनाया जाता रहा है । सरकार ने अब इस उत्सव में आदमी का शामिल किया जाना बंद कर दिया है और अब आदमी के स्थान पर बकरा बिठाया जाता है।

‘बला’ जहां मार्कण्डेय ऋषि और बाला सुन्दरी के मंदिर हैं, में भूण्डा उत्सव मनाना बंद कर दिया गया है। निरमण्ड में यह उत्सव अब भी मनाया जाता है। परन्तु मानव के स्थान पर अब बकरे की बलि दी जाती है।
यह उत्सव हर बारह वर्ष के बाद मनाया जाता था। भुण्डा त्यौहार अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग पर समय मनाया जाता है। सन् 2005 में रोहडू क्षेत्र में भी 70 साल के उपरांत मनाया गया था। इस मेले में क्षेत्र के नाग देवताओं का भाग लेना निषिद्ध है।
इसकी पृष्ट भूमि खशों और नागों के संघर्ष से जोड़ी जाती हैं। खशों ने नागों पर विजय पाने के पश्चात् इस त्यौहार को विजय उत्सव के रूप में मनाया था। भुण्डा में प्रयोग किये जाने वाले रस्से की आकृति भी नाग के समान होती है। जिसका एक सिरा मोटा तथा दूसरा सिरा पूंछ के समान पतला होता है।
इस रस्से को खश जाति के विशेष वंश के प्रतिनिधि द्वारा ही बांधा जाता है। नौड़ जो रास्ते पर बलि के लिये बैठता था नाग वंश का प्रतिनिधि माना जाता है। कुछ विद्वानों ने भुण्डा को रस्से पर फिसलने का खेल तथा अन्य ने इसका संस्कृत में शाब्दिक अर्थ निकाल खुशी की अभिव्यक्ति कहा है। परन्तु भुण्डा के विशेष अनुष्ठान और खतरों को सम्मुख रखते हये इसे खेल या खुशी का त्योहार नहीं माना जा सकता है।
निरमण्ड का भुण्डा :
इसके लिए एक वर्ष पूर्व तैयारी आरंभ होती है। छ: मास पूर्व रस्से के लिये विशेष घास मूंज काटनी पड़ती है। इस घास से 500 मीटर लम्बा रस्सा ‘बेड़ा’ बनाता है। वह प्रतिदिन सात हाथ रस्सा स्नान करने के बाद बनाता है। उसे इन दिनों प्रथक कमरे में रखा जाता है तथा वह केवल एक समय भोजन करता है। उसे एक बिल्ली भी दी जाती है जो रस्से की चूहों से रक्षा करती है।
निरमण्ड में भुण्डा बूढ़ा देवता के नाम से किया जाता है। पहले दिन देवता यज्ञ स्थान पर अपने श्रद्धालुओं के साथ आता है। अगले दिन मन्दिरों की शिखा पर पूजा शिखा फेर की जाती है। विचार है कि इससे नागों की प्रेतात्मायें शांत होती हैं। फिर काली की पूजा की जाती है।
तीसरे दिन देवता को भोर होने से पूर्व ‘कुर्पन नदी में स्नान के लिये ले जाया जाता है। रस्सा भी साथ ले जाते है। दोनों को नदी में स्नान कराया जाता है। वापसी पर रस्से के एक सिरे को ऊंचाई पर तथा दूसरे सिरे को नीचे निश्चित स्थानों पर बांध दिया जाता है। एक बजे के पश्चात् बेड़ा को देवता की अरगलों पर बैठाकर लाया जाता है।
रस्से पर काष्ठ फिरनी रख कर सूत की डोरियों से बांधी जाती हैं। बेड़ा को उस पर बिठाकर फिरनी को रेत की थैलियों से सन्तुलित किया जाता है और फिरनी की डोरी काट दी जाती है और वह बेड़ा के साथ तेजी से सरकती है। बेड़ा रस्से के दूसरे सिरे तक यदि पहुंचता तो यह जिस व्यक्ति की वस्तु को छुये उसे वह देनी पड़ती थी।
यदि बेड़ा मर जाता तो उसका दाह संस्कार धूमधाम से किया जाता था। उसकी पत्नी को देवता की ओर से जमीन तथा धन निर्वाह के लिये दिया जाता था। जीवित बेड़ा को भी बड़ी धूमधाम से मेला स्थल को ले जाया जाता था। अब बेड़ा के स्थान पर बकरा काष्ठ फिरनी पर बिठाया जाता है। चौथे दिन रंगोली सजाई जाती है, जहां पर परशुराम की पालकी लाई जाती है।
भुण्डा की समाप्ति की घोषणा की जाती अन्य सभी देवता उस मण्डप में प्रवेश कर अपने-अपने स्थानों को लौट जाते हैं। मेला समाप्त हो जाता है। 1856 ई. में भुण्डा में बेड़ा की मृत्यु हो गई थी। उस समय के पश्चात् रस्से पर बकरा चढ़ाया जाने लगा। अब जहां भी भुण्डा उत्सव मनाया जाता है वहां ‘बेड़ा’ की सुरक्षा के लिए विशेष प्रबंध किए जाते हैं। जिन स्थानों पर बेड़ा के लिए मनुष्य चुना जाता है, वहां पर प्रशासन की ओर से सुरक्षा के लिए जाल का प्रबंध होता है।
परशुराम और निरमण्ड गांव
माना जाता है कि भुण्डा यज्ञ की शुरुआत परशुराम द्वारा हो गई थी। पहले इसे ‘नरमेघ यज्ञ’ भी कहा गया। परशुराम ने निरमण्ड में अपनी कोठी में इस यज्ञ के दौरान यज्ञ में नरमुण्डो की आहुतियां दी थी। इसी बजह से आज के निरमण्ड गांव का नाम तब ‘नरमुण्ड’ पड़ा था। हर बारह वर्ष के पश्चात् हरिद्वार का कुंभ मेला समाप्त होते ही वेद पाठी ब्राह्मण सीधे निरमण्ड आ जाते थे। तभी से यह परंपरा आज भी ज्यों की त्यों बनी हुई है।
Bhunda Festival of Nirmand District Kullu
Read Also : More HP General Knowledge
- HPPSC Shimla All Latest Notification -December 2025

- HPU Shimla All Latest Notifications -December 2025

- SSC Constable (GD) And Rifleman (GD) Recruitment 2026

- HPRCA Hamirpur Special Educator, JOA (Library) And Steno-Typist Recruitment 2026

- HPU Shimla All Latest Notifications -November 2025
