Temple Architecture & Style in Himachal Pradesh
हिमाचल प्रदेश में हजारों मंदिर और धार्मिक स्थल है। विभिन्न मंदिरों की वास्तुकला शैली भी भिन्न भिन्न है। वास्तुकला की दृष्टि से हिमाचल प्रदेश के मंदिरों को छतों के आकार के आधार पर शिखर , समतल-छत , गुंबदाकार ,बंद छत ,स्तूपाकार और पैगोडा शैली में बांटा जा सकता है –
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बंद छत शैली :
यह हिमाचल प्रदेश की सबसे प्राचीन शैली है। मेरुवर्मन द्वारा 7 वीं शताब्दी में बनवाया भरमौर का लक्षणा देवी मंदिर और छतराड़ी के शक्ति देवी के मंदिर इसके प्रमुख उदाहरण है। लाहौल स्पीति का काली देवी या मृकुला देवी मंदिर भी बंद छत का उदाहरण है।
शिखर शैली
शिखर शैली के मंदिरों में छत के ऊपर का हिस्सा पर्वत चोटीनुमा होता है। काँगड़ा का मसरूर रॉक कट मंदिर इस शैली से बना है।
समतल शैली
समतल छत शैली में समतल छत होने के साथ-साथ इनकी दीवारों पर काँगड़ा शैली के चित्रों को चित्रित किया गया है। सुजानपुर टीहरा का नर्बदेश्वर मंदिर ,नूरपुर का ब्रज स्वामी मंदिर , स्पीति के ताबों बौद्ध मठ भी इसी शैली के है। समतल शैली में मुख्यत राम और कृष्ण के मंदिर है
गुंबदाकार शैली
काँगड़ा का ब्रजेश्वरी देवी ,ज्वालाजी ,चिंतपूर्णी मंदिर ,बिलासपुर ,का नैनादेवी मंदिर ,सिरमौर का बालासुन्दरी मंदिर इस शैली से संबंधित है। इस प्रकार की शैली से बने मंदिरों पर मुगल और सिक्ख शैली का प्रभाव है।
स्तूपाकार शैली
जुब्बल के हाटकोटी के हाटेशवरी और शिव मंदिर को इसी शैली में रखा जा सकता है। इस शैली के अधिकतर मंदिर जुब्बल क्षेत्र में है। इसे पिरामिड शैली भी कहा जाता है।
पैगोडा शैली
कुल्लू के हिडिम्बा देवी (मनाली ), मण्डी का पराशर मंदिर ,खोखण का आदि ब्रह्मा मंदिर , सुगंरा का महेश्वर मंदिर इस शैली से बने हुए है।
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