Important Questions for HPS Allied Services Main – VII

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1.खश कौन थे? कैसे इन्होंने हिमाचल में ख्याति प्राप्त की?
Who were Khasas? How they came to prominence in Himachal Pradesh. (4 marks 60 words)

उतर-: खश मध्य एशिया से आने वाली एक महत्वपूर्ण व अति शक्तिशाली योद्धा जनजाति थी। इनका उल्लेख प्राचीन ग्रंथों, पुराणों और बृहदसंहिता में हुआ है। माना जाता है कि ये अपने पशुओ के लिए चारागाहओं की तलाश में कश्मीर घाटी से होते हुए हिमाचल तक पहुंचे थे। इनका आगमन हिमाचल में आर्यों से भी पहले हो चुका था। इन्होंने हिमाचल में आकर यहां के मूल आदिवासी कबीलों कोल, दास, दस्यु, निषाद और किरातों को हराकर यहां पर अपना प्रभुत्व कायम किया और अपने रहन-सहन, खान-पान और उच्च सामाजिक आदर्शों से ख्याति प्राप्त की।

2.नातेदारी से आप क्या समझते हैं? किन्नौर में नातेदारी के प्रचलन पर संक्षेप में वर्णन करें।
What do you understand by kinship? Explain briefly the kinship pattern prevalent in Kinnaur. (4 marks 60 words)

उतर-: साधारण भाषा में जिसे हम रिश्तेदारी कहते हैं, समाजशास्त्र में उसी को नातेदारी की संज्ञा दी गई है। यह समाज में परिवारों का आपसी जुड़ाव है।यह एक परिवार से दूसरे परिवार के साथ या एक ही परिवार के अलग-अलग सदस्यों के मध्य हो सकता है। समाज में यह संबंध वंशानुगत, शादी से या बच्चों को गोद लेने आदि से बन सकता है। राज्य के बाकी जिलों के विपरीत किन्नौर में शादी के संदर्भ में बहुपति प्रथा प्रचलित है। शादी की अलग-अलग परंपराएं हार, जनेत्ंग, दुब-दुब, दम्म चालिस इत्यादि का भी वहां प्रचलन हैं।

3.हमारे समाज में मेलों और उत्सवों का सांस्कृतिक महत्व क्या है? हिमाचल के संदर्भ में इसकी चर्चा करें।
What is the cultural importance of fairs and festival in our society? Discuss it in the context of Himachal Pradesh. (8 marks 120 words)

उतर:- मेले और उत्सव किसी भी समाज की सांस्कृतिक व सामाजिक धरोहर माने जाते हैं।हिमाचल में राज्य के अलग-अलग हिस्सों में कई छोटे व बड़े मेलों एवं उत्सवों का आयोजन किया जाता है।
मेलों एवं उत्सवों के कई सांस्कृतिक व धार्मिक आयाम होते हैं। ये हजारों वर्षों से हमारी प्राचीन परंपराओं को जैसे संगीत, नृत्य व अन्य लोक मनोरंजन कलाओं को संजोए हुए हैं। प्राचीन वाद्य यंत्रों का स्वरूप समाज में बनाए रखा है एवं संगीत व मनोरंजन पद्धति को संजोए हुए हैं। मंडी का शिवरात्रि मेला जहां माधोराय की जलेब के साथ आज भी अपने ऐतिहासिक महत्व को बनाए हुए है, वहीं तिब्बत के साथ व्यापार के रूप में शुरू हुआ लवी मेला आज भी घोड़ों के व्यापार के लिए प्रसिद्ध है। कुल्लू के दशहरे में जहां जगत सिंह के शासनकाल से ही रघुनाथ की रथ यात्रा चली आ रही है, वहीं चंबा के मिंजर मेले में मिंजर बहाने की परंपरा साहिल बर्मन के समय से जारी है। दूसरी तरफ हिमाचल के लगभग प्रत्येक गांव एवं छोटे कस्बों में कई तरह के धार्मिक व व्यापारिक मेलों एवं का उत्सवों का आयोजन किया जाता है जो लोगों को उनके व्यस्त क्षणों में से राहत दिलाकर मनोरंजन के साधन उपलब्ध करवाते हैं, जिनमें लोक वाद्य यंत्रों के साथ लोग लोक-नृत्यों, लोकनाट्यों , प्राचीन खेलों इत्यादि का आयोजन करते है। मेले और उत्सव लोगों को आपसी मेल-जोल का भी अवसर प्रदान करते हैं एवं द्वेष और कलह को समाज में कम करने में भी सहायक है।
हमारी प्राचीन संस्कृति व प्राचीन लोक कलाएं आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचे इसके लिए जरूरी है कि मेले समाज में अपना वजूद कायम रखें।

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