पंगवाल : हिमाचल प्रदेश की जनजाति
पाँगी क्षेत्र में रहने के कारण पंगवाल नाम पडा है। चम्बा के पांगी क्षेत्र के लोगों को पंगवाल कहते हैं। पांगी घाटी चंद्रभागा और संसारी नाले के बीच स्थित है। पांगी एक दुर्गम क्षेत्र है जिसका सर्दियों में देश प्रदेश के हरभूभाग से सम्पर्क कट जाता है। पांगी घाटी के लोग अति प्राचीन निवासी हैं। इनका व्यवसाय कृषि है। पंगवाल समाज कई जातियों तथा उपजातियों में बंटा है। पंगवाल आनाज से भूसे को अलग नहीं करते हैं उसके साथ ही पीस लेते हैं क्योंकि इस क्षेत्र में अनाज की भारी कमी है। पंगवाल समाज में औरतों का स्थान उच्च है। इस क्षेत्र की दुर्गमता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है, कि अंग्रेजी शासन काल में इस क्षेत्र को गए अधिकारी व कर्मचारी को मृत्यु भत्ता भी दे दिया जाता था क्योंकि यह माना जाता था कि शायद ही अमुक व्यक्ति वापिस आए।
इस प्रदेश के निवासियों का धर्म हिन्दू धर्म ही है। कुछ तिब्बती लोग भी यहाँ रहते हैं जिनको ‘भोट’ कहा जाता है। यहां के निवासियों पर भी बौद्ध-धर्म का बड़ा प्रभाव है। प्रायः लामाओं से पूछकर यहाँ के निवासी, मरने-जीने पर आवश्यक धार्मिक कार्य करते है । वास्तव में इस प्रदेश में ब्राह्मणों की अपेक्षा लामाओं का ही अधिक प्रभाव है। ब्राह्मण का यहाँ के समाज पर कोई विशेष प्रभाव नहीं है।
पंगवालों की स्वतंत्रा भाषा है, जिसको ‘पंगवाली’कहते हैं। इस भाषा को स्थानीय टांकरी लिपि में लिखने का पहले रिवाज अधिक था जो अब धीरे-धीरे समाप्त हो रहा है।
पहनावा : पांगी में घास का जूता, जिसे यहाँ पूला कहते हैं, लगाते हैं। पूले बनाने का काम औरतों का है। किलाड़ से चंबा जाने आने में 20 पूले टूटते हैं। इस प्रकार पंगवाल जब कभी चंबा जाते थे तब राशन के अतिरिक्त पूलों का भी बोझा उठाकर जाते। जहाँ पूला टूटा वहाँ ही उसे छोड़कर पंगवाल नया पूला लगा लेता हैं। घास के पूले से पाँव गरम रहता है और बरफ पर पांव जमाने में सुविधा भी रहती है। वस्त्र प्राय: ऊनी पहनते हैं । पुरुष सिर पर सूती टोपी लगाते हैं जो पंगवाल की पहचान है। औरतें भी सर पर चुराही टोपी लगाती हैं। कमर में रस्सा बांधे रहने पर भी पंगवाल बोझ औरत से ही उठवाता है। औरतें इस प्रदेश में अपेक्षाकृत कम हैं । फिर भी यहाँ बहुपत्नी-प्रथा चलती है। जिस का काम एक से नहीं चलता वह दूसरी औरत ले आता है। इस प्रकार गरीब आदमी के लिये शादी करना यहाँ काफी मुश्किल रहता है।
औरतें गले में मनकों की माला पहनना पसंद करती हैं । चाँदी के गहने भी थोड़े लगाती हैं। गरीबी बहुत अधिक होने से औरतें दिन में जो ऊनी वस्त औढ़े रहती हैं उससे ही रात को कम्बल का काम लेती हैं। बरतन भी उनके घर पर बहुत कम दिखाई देते हैं। चंबा जिले में गद्दी और पंगवाल इन दोनों की वेश-भूषा सर्वथा पृथक है और कहीं भी दूर से इन्हें पहचाना जा सकता है। चंबा के अजायब घर में पंगवाल स्त्री -पुरुष दोनों का सही रूप दिखलाने के लिये लकड़ी की मूर्ति बनाकर उसपर वेषभूषा का स्वरूप दिखाया हुआ है। चंबा जिले के निवासी होने पर भी पंगवाल स्त्री-पुरुष चंबा शहर में अपने आपको परदेशी सा अनुभव करते हैं। और शहरी लोग भी पंगवाल को अपने से हीन तथा संस्कार रहित मानकर नफरत से देखते हैं। प्रायः पंगवालों के हाथ पानी लेने में लोग परहेज करते हैं, क्योंकि उनकी दृष्टि में पंगवाल गन्दे होते हैं।
फसलें : मानसून से वंचित रहने के कारण तथा अधिक हिम-पात के कारण पांगी लाहौल में मुख्यतया एक ही फसल होती थी। यहाँ की भूमि को औत्तर कहा जाता है। गेहूं, जौ और एलो, यहाँ के मुख्य अन्न हैं, जो जुलाई के अंत में और कहीं-कहीं अगस्त में काटे जाते हैं। फुल्लन, भरेश, कोदरा, और मसूर की भी खेती होती है। लेकिन पिंछले वर्षों में कृषि क्षेत्र में आई उन्नत तकनीक से यहाँ पर भी आफ सीजन सब्जियों का उत्पादन भारी मात्रा में हो रहा है।
विवाह : पंगवाल पुरुष के लिए विवाह करना जीवन की प्रमुख साधना है। विवाह यहाँ पर प्रधानतया तीन प्रकार से होते हैं।
- बट्टा : औरत के बदले में अपनी बहन अथवा लड़की देकर जो विवाह होता है उसे बट्टा कहते है। इस प्रकार के विवाह को बदले का विवाह कह सकते हैं ।
- सप्त वार्षिक श्रम विवाह : जैसा कि ऊपर कहा है पंगवाल के जीवन में विवाह करना बड़ा कार्य है। क्योंकि विवाह किये बिना मर जाना लोक-परलोक दोनों के लिये बुरा है । औरत के बिना घर का काम नहीं चलता क्योंकि सारा काम यहाँ औरत ही करती है। तथा जिसका विवाह न हो उसकी समाज में प्रतिष्ठा नहीं। इस कारण बहुधा सास, ससुर के घर पर सात साल तक मजदूरी करके मुश्किल से औरत मिलती है। इस असे में खाना ससर देता है। बहुत बार खाने पर भी विवाहार्था का व्यय करना पड जाता है।
- बलात् हरण विवाह : बहुधा लड़के लड़की में परस्पर प्रेम होने के बाद लड़के की ओर से बलात् हरण होता है। उसका साथ देने वाले उसके साथी होते हैं और रोती हुई औरत को जबरदस्ती उठाकर लाते हैं। कहा और समझा यह जाता है कि लड़की झूठ में रोती है वास्तव में उसकी सलाह से ही हरण होता है। बाद में बकरा और शराब देकर सास-ससर से लडका क्षमा माँगता है जो मिल जाती हैं।
तलाक : तलाक को यहाँ बुरा नहीं माना जाता। तलाक के बाद औरत से जब कोई दोबारा शादी करता है तो उसे रीत धन देना पड़ता है। तलाक को यहाँ छडदे कहते हैं।
मिन्दलवासनी देवी : पांगी में मिन्दलवासनी सबसे बड़ी देवी है। किलाड़ जो पांगी का मुख्यालय है उससे 10 मील दूर चंद्रभागा नदी के किनारे मिन्दल गाँव में इनका मंदिर है। इस गांव में लोग एक बैल से हल चलते हैं। यहाँ कोई चारपाई पर नहीं सोता।
संपत्ति का बंटवारा : संपत्ति का बँटबारा यहाँ पंगवद और चुण्डावद प्रथा से होता है। पंगवद में पत्नी के सभी पुत्रों में जायदाद को बराबर बाँटा जाता है जबकि चूंडावद में जायदाद पहले पत्नियों में बराबर बाँटी जाती है फिर उनके अपने पुत्रों में बराबर बंटती है।
भोजन : उनेस, मौदाज ,लुची ,बाकरु ,बियर ,कुरोन।
अराक : जौ की शराब
फल : चीर ,चुर ,मिरी ,थान ,खोर ,थांगी।
गहने : बुलोक (Nosering ), फ़रारु ( कान की बाली )
प्रथा : शिक बंदे (मुण्डन ) , किल्ला (मुण्डन वाले बालों को मिटटी में दबाने की प्रथा।
जातरा : लवान (मार्च ) , उनोनी और सैन्य (अप्रैल ) , दरखान और बारिया (सावन में ), फुलजातरा (कार्तिक में )
मेले –थेने (अगस्त ) , दिखरैन (सावन ), परवाच , सिस्सू (नववर्ष का दिन )
ब्राह्मण के प्रकार : गौर ब्राह्मण (भिक्षा पर निर्भर ) , संगरिया ब्राह्मण (जन्म -विवाह करवाने वाले ), कालिया ब्राह्मण (मृत्यु कर्मकांड करने वाले )
पंगवाल : हिमाचल प्रदेश की जनजाति
इसे भी पढ़ें : हिमाचल की जनजाति : किन्नर जनजाति
- HPPSC Shimla Lecturer ( Agad Tantra, Ras-Shastra, Rog-Nidan & Samhita) Recruitment 2023
- HPPSC Shimla Assistant Research Officer Recruitment 2023
- APS Dagshai Driver, Clerk, Warden Recruitment 2023
- Indian Navy Trade Apprentice Recruitment 2023 -Apply Online
- Solved GK Questions Asked In HP TET Shastri November 2023