चम्बा का किसान आंदोलन – हिमाचल प्रदेश

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1895 ई. में में चम्बा रियासत में सार्वजनिक किसान आंदोलन हुआ। राजा शाम सिंह और वज़ीर गोविन्द राम के प्रशासन में किसानों पर भूमि लगान का भारी बोझ था। प्रशासन ने किसानों के हित की परवाह न करते हुए लगान में असंगत बृद्धि कर दी। इसके अतिरिक्त बेगार भी अधिक ली जाने लगी।

किसी व्यक्ति को मजदूरी या वेतन दिए बिना कार्य करवाने को बेगार प्रथा कहा जाता है। बेगार प्रथा के अंतर्गत प्रत्येक परिवार से एक व्यक्ति वर्ष में छः महीने रियासत का कार्य मुफ्त में करता था। व्यक्ति को कोई भी वेतन नहीं दिया जाता था उन्हें सिर्फ भोजन ही मिलता था। केवल कुलीन वर्ग के राजपूत और ब्राह्मण बेगार से मुक्त थे।

अत: लोगों ने भूमि -लगान कम करने और बेगार की अवधि कम करने का अनुरोध किया। लेकिन राजा ने उनकी मुसीबतों की और कोई ध्यान नहीं दिया। यह देखकर किसानों ने आंदोलन की राह अपना ली।

भटियात वजीरी के किसानों ने इस आर्थिक शोषण के विरुद्ध पूरी वजीरी में असहयोग आंदोलन आरम्भ किया। ‘बलाना गांव ‘ के लोगों ने इसमें मुख्य रूप से भाग लिया। गांव वालों ने भूमि -लगान देने से इंकार कर दिया। लगान वसूल करने वाले अधिकारियों को वजीरी में घुसने नहीं दिया। कई स्थानों पर कर्मचारियों को धक्के मार कर गांव से बाहर निकाल दिया गया।

लोगों ने बेगार सेवा देनी बंद कर दी। कई महीनों तक यह असहयोग आंदोलन चलता रहा। जब प्रशासन इसे दबा नहीं सका , तो अंग्रेज सरकार ने हस्तक्षेप किया। लाहौर के ब्रिटिश कमिशनर ने इस आंदोलन की जाँच -पड़ताल के लिए एक आयोग स्थापित किया। इस आयोग ने किसानों की न्याय देने और उनकी मांगे मनवाने का आश्वासन दिया।

लम्बे आंदोलन से थके किसानों ने इन आश्वासनों पर विश्वास करके आंदोलन स्थगित कर दिया। आंदोलन के मुखिया बलाना गाँव के लारजा ,बस्सी और बिलू को पकड़ कर दण्डित किया गया। आंदोलन के नेता लारजू उर्फ़ लरज़ा को कठोर यातनाएं सहन करनी पड़ी। इस प्रकार यह किसान आंदोलन धोखे और दमन की नीति से दबा दिया गया।

चम्बा का किसान आंदोलन – हिमाचल प्रदेश

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