Important Questions for HPS Allied Services Mains (GS Paper-1) XVIII
- निम्नलिखित में से कौन ‘एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल’ के गठन से संबंधित नहीं है?
A) विलियम जोन्स
B) हैनरी टॉमस कोलब्रुक
C) नैथेनियल हॉलहेड
D) वारेन हेस्टिंग्स
उतर-:D) वारेन हेस्टिंग्स
व्याख्या:- वारेन हेस्टिंग्स प्राच्यवादियों के भारी समर्थक थे। लेकिन एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल के गठन में उनकी कोई भूमिका नहीं थी।
1784 विलियम जोन्स ने हैनरी टॉमस कोलब्रुक और नैथेनियल हॉलहेड के साथ मिलकर एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल का गठन किया और ‘एशियाटिक रिसर्च’ नामक शोध पत्रिका का प्रकाशन शुरू किया।
विलियम जोन्स 1783 में भारत आए। ये कंपनी द्वारा स्थापित सुप्रीम कोर्ट के जूनियर जज के पद पर कार्यरत थे। ये एक भाषाविद् तथा विचारों से प्राच्यवादी थे। हैनरी टॉमस कोलब्रुक और नैथेनियल हॉलहेड भी प्राच्यवादी थे। ये सभी भारतीय साहित्यों को समझकर उनके अनुवाद में लगे हुए थे। इसी उद्देश्य से इन्होंने एशियाटिक सोसाइटी ऑफ़ बंगाल की स्थापना की थी।
एशियाटिक सोसायटी (The Asiatic Society) का उद्देश्य प्राच्य-अध्ययन को बढ़ावा देना था।
प्राच्य-अध्ययन : एशिया की भाषा और प्राचीन संस्कृति का अध्ययन प्राच्य-अध्ययन और इसका अध्ययन करने वाले यूरोपियन प्राच्यवादी कहलाया।
प्राच्यवादी मानते थे कि अंग्रेज़ों को पश्चिमी ज्ञान की बजाय भारतीय ज्ञान को ही प्रोत्साहित करना चाहिये। वे मानते थे हिन्दुओं और मुसलमानों को वही पढ़ाया जाना चाहिये, जिससे वे पहले से परिचित हैं और जिसे वे आदर एवं महत्त्व देते हैं। केवल तभी अंग्रेज़ ‘देशी जनता’ का दिल जीत सकते हैं और केवल तभी अजनबी शासक अपनी प्रजा से आदर की उम्मीद कर सकते हैं।
प्राच्यवादियों के विचारों को ध्यान में रखकर ही 1781 में अरबी, फारसी, इस्लामिक कानून के अध्ययन को बढ़ावा देने के लिये कलकत्ता में एक मदरसा खोला गया। इसी क्रम में 1791 में बनारस में हिन्दू कॉलेज की स्थापना की गई, ताकि वहाँ प्राचीन संस्कृत ग्रंथों की शिक्षा दी जा सके और देश का शासन चलाने में मदद मिले।
- 1830 के दशक में कंपनी ने भारतीय स्कूलों में शिक्षा की प्रगति पर रिपोर्ट तैयार करने का काम किस्से दिया था?
A) विलियम जोन्स
B) विलियम एडम
C) जेम्स मिल
D) मेकॉले
उतर-:B) विलियम एडम
व्याख्या :- 1830 के दशक में स्कॉटलैंड से आए ईसाई प्रचारक विलियम एडम को कंपनी ने देशी स्कूलों में शिक्षा की प्रगति पर रिपोर्ट तैयार करने का काम दिया था। इस रिपोर्ट के अनुसार बंगाल और बिहार में एक लाख से अधिक पाठशालाएँ थी। इनमें पढ़ने वाले बच्चों की कुल संख्या 20 लाख से भी अधिक थी। एडम ने पाया कि यह प्रणाली स्थानीय आवश्यकताओं के लिये काफी अनुकूल है।
- उन्नीसवीं सदी में भारतीय विचारकों और शिक्षा के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः
1.महात्मा गांधी पश्चिमी शिक्षा के विरुद्ध थे, परंतु रबीन्द्रनाथ टैगोर ने पश्चिमी शिक्षा का पूर्णतः समर्थन किया।
2.महात्मा गांधी ने भारतीय शिक्षा को बढ़ावा देने के लिये ‘शान्तिनिकेतन’ नामक संस्था की शुरुआत की।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
A) केवल 1
B) केवल 2
C) 1 और 2 दोनो
D) न तो 1 और न तो 2
उतर:-D) न तो 1 और न तो 2
व्याख्या :- महात्मा गांधी और रबीन्द्रनाथ टैगोर पश्चिमी शिक्षा के विरुद्ध थे, लेकिन दोनों के बीच फर्क भी था। गांधीजी पश्चिमी सभ्यता और मशीनों व प्रौद्योगिकी की उपासना के कट्टर आलोचक थे। टैगोर आधुनिक पश्चिमी सभ्यता और भारतीय परंपरा के श्रेष्ठ तत्त्वों का सम्मिश्रण चाहते थे।
शान्तिनिकेतन संस्था की शुरुआत रबीन्द्रनाथ टैगोर ने 1901 में की थी। यह कलकत्ता से 100 किलोमीटर दूर एक ग्रामीण परिवेश में उनका अपना स्कूल था।
- ब्रिटिश भारत में नील की खेती के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः
1.अंग्रेज़ों द्वारा अपने लाभ के लिये पैदा कराई जाने वाली मुख्य फसलों में से एक थी जिसकी यूरोप में बहुत मांग थी।
2.नील की खेती के दो मुख्य तरीके थे- निज और रैयती।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
A) केवल 1
B) केवल 2
C) 1 और 2 दोनो
D) न तो 1 और न तो 2
उतर:-C) 1 और 2 दोनो
व्याख्या :- अंग्रेज़ भारत में अपनी ज़रूरत के हिसाब से विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न फसलों की खेती करा रहे थे जिसमें नील और अफीम भी शामिल हैं। नील एक उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उगने वाली फसल है। अन्य फसलों में कुछ निम्नलिखित हैं-
(i) बंगाल में पटसन
(ii) असम में चाय
(iii) संयुक्त प्रान्त में गन्ना
(iv) पंजाब में गेहूँ
(v) महाराष्ट्र व पंजाब में कपास
(vi) मद्रास में चावल
यूरोप के ‘वोड’ नामक पौधे की तुलना में ‘नील’ का पौधा बेहतर रंग देता था जिस कारण भारतीय नील की यूरोप में बहुत मांग थी। भारत के आन्ध्र प्रदेश के बुनकरों द्वारा बनाए गए कलमकारी छापे से लेकर ब्रिटेन के कलाकारों द्वारा बनाए जाने वाले विभिन्न फूल वाले छापों में नील का प्रयोग होता था।
नील की खेती के दो मुख्य तरीके थे- निज और रैयती। निज खेती व्यवस्था में बागान मालिक या तो खुद अपनी ज़मीन में या ज़मीन खरीदकर या भाड़े पर लेकर मज़दूरों द्वारा खेती कराते थे। रैयती व्यवस्था के तहत बागान मालिक गाँव के मुखियाओं या रैयतों के साथ एक अनुबंध करते थे। जो अनुबंध पर दस्तखत करता था उसे नील उगाने के लिये कम ब्याज पर कर्जा मिलता था। कर्ज़ लेने वाले को कम-से-कम 25 प्रतिशत ज़मीन पर नील उगाना होता था। बागान मालिक बीज और उपकरण देते थे जबकि बुआई और देखभाल काश्तकार करता था।
नील के साथ परेशानी यह थी कि उसकी जड़ें बहुत गहरी होती थीं और वह मिट्टी की सारी ताकत खींच लेती थी। इसलिये नील की कटाई के बाद वहाँ धान की खेती नहीं की जा सकती थी।
- ब्रिटिश काल मे भारत में 1899-1900 ईस्वी में बिरसा मुंडा के नेतृत्व में चलाया गए मुंडा आंदोलन के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः
1.बिरसा ने अपने समर्थकों को दीकुओं (बाहरी लोगों) के उत्पीड़न से आज़ाद कराने के लिये आन्दोलन किया।
2.बिरसा का आंदोलन आदिवासी समाज को सुधारने का आन्दोलन था।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
A) केवल 1
B) केवल 2
C) 1 और 2 दोनो
D) न तो 1 और न तो 2
उतर:-C) 1 और 2 दोनो
व्याख्या :- बिरसा का जन्म मुंडा परिवार में हुआ था। मुंडा एक जनजातीय समूह है जो छोटानागपुर में रहता है। बिरसा के समर्थकों में क्षेत्र के दूसरे आदिवासी- संथाल और उराँव भी शामिल थे। बिरसा ने अपने समर्थकों को दीकुओं (बाहरी लोगों) के उत्पीड़न से आज़ाद कराने के लिये आन्दोलन किया। अतः कथन 1 सही है।
बिरसा का आंदोलन आदिवासी समाज को सुधारने का आन्दोलन था। उसने मुंडाओं से आह्वान किया कि वे शराब पीना छोड़ दें, गाँवों को साफ रखें और डायन व जादू टोने में विश्वास न करें। बिरसा ने ईसाई मिशनरियों और हिंदू ज़मींदारों का भी लगातार विरोध किया। वह उन्हें बाहर का मानता था जो मुंडा जीवन शैली नष्ट कर रहे थे। अतः कथन 2 भी सही है।
अंग्रेज़ों को बिरसा आन्दोलन के राजनीतिक उद्दश्यों से बहुत ज़्यादा परेशानी थी। यह आन्दोलन मिशनरियों, महाजनों, हिंदू भूस्वामियों और सरकार को बाहर निकालकर बिरसा के नेतृत्व में मुंडा राज स्थापित करना चाहता था।
सफेद झंडा बिरसा राज का प्रतीक था।सन् 1900 में बिरसा की हैजे से मृत्यु हो गई और आन्दोलन ठंडा पड़ गया।
- अंग्रेज़ों ने अपने शासनकाल में भारतीय समाज में विधवाओं और बच्चों के जीवन में सुधार लाने के लिये कुछ कानूनी प्रयास किये। निम्नलिखित में से ऐसे प्रयासों का सही कालक्रम कौन-सा है?
A) विधवा विवाह के पक्ष में कानून → सती प्रथा पर रोक → बाल विवाह निषेध अधिनियम
B) बाल विवाह निषेध अधिनियम → सती प्रथा पर रोक → विधवा विवाह के पक्ष में कानून
C) सती प्रथा पर रोक → बाल विवाह निषेध अधिनियम → विधवा विवाह के पक्ष में कानून
D) सती प्रथा पर रोक → विधवा विवाह के पक्ष में कानून → बाल विवाह निषेध अधिनियम
उतर:-D) सती प्रथा पर रोक → विधवा विवाह के पक्ष में कानून → बाल विवाह निषेध अधिनियम
व्याख्या :- राजा राम मोहन राय (1772-1833) देश में पश्चिमी शिक्षा का प्रसार करने और महिलाओं के लिये अधिक स्वतंत्रता व समानता के पक्षधर थे।उनके प्रयासों के फलस्वरूप 1829 में सती प्रथा पर पाबंदी लगाई गई।
प्रसिद्ध समाज सुधारक ईश्वरचंद्र विद्यासागर के प्रयासों से 1856 में विधवा विवाह के पक्ष में कानून पारित किया गया। विद्यासागर ने कलकत्ता में लड़कियों के लिये स्कूल भी खोला। इसके अतिरिक्त विधवा विवाह के समर्थन में मद्रास प्रेसीडेंसी के तेलुगू भाषी इलाकों में वीरेशलिंगम पंतुलु ने एक संगठन बनाया।
बाल विवाह निषेध अधिनियम 1929 में पारित किया गया। इस कानून के अनुसार 18 साल से कम उम्र के लड़के और 16 साल से कम उम्र की लड़की की शादी नहीं की जा सकती थी।
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