Folk Dances of Himachal Pradesh | हिमाचल प्रदेश के लोकनृत्य
Folk Dances of Himachal Pradesh ( हिमाचल प्रदेश के लोकनृत्य ) हिमाचल प्रदेश में अनेक प्रकार के लोकनृत्य है। विभिन्न क्षेत्रों के अपने अलग लोकनृत्य है जिनकी अपनी अलग पहचान है। उनके अपने अलग नियम है उन्ही नियमों के अनुसार नृत्य किये जाते है :
Table of Contents
कायड्ग लोकनृत्य :
यह किनौर का सबसे लोकप्रिय सामूहिक नृत्य है। क्यांग लोक नृत्य में लोक नाट्य या गीति नाट्य बनने के सभी गुण विद्यमान है। इस क्यांग नृत्य के अनेक रूप है जिनमे बाक्यांग , थारक्याँग , छेरकी क्यांग , शुनाकाय और बोंयांगछू नृत्य उल्लेखनीय है।
मुखौटा नृत्य :
लाहौल स्पीति और किनौर में के मठों में लामा द्वारा मुखौटा नृत्य किया जाता है। किन्नौर के लोग दुरात्माओं को भगाने के लिए ये नृत्य प्रदर्शित करते हैं। वे मुखौटे प्राय: लकड़ी के बने होते हैं। सिर और ठोडी पर स्थानीय पशुओं के बाल लगाए जाते हैं। सभी मुखौटों पर विभिन्न रंग चढ़ाए जाते हैं और उन्हें रंग बिरंगे मणकों और पत्थरों से सजाया जाता है। ये प्रायः रक्षा के लिए मंदिरों में रखे जाते हैं और लामा ही उन्हें विशेष उत्सवों पर बाहर निकालते हैं। इन मुखौटा नृत्यों में प्रसिद्ध हैं (क) लामा नृत्य (ख) प्रेत नृत्य (ग) छम्म नृत्य तथा (घ) तेमोस्वांग नृत्य।
लामा नृत्य :
इस नृत्य का आयोजन किनौर के आदिवासी भिक्षुओं द्वारा भूत-प्रेतों को भगाने और प्राकृतिक प्रकोपों को हटाने के लिए किया जाता है। इस लोक नृत्य में सभी नर्तक मुखौटा पहनकर नाचते हैं। नर्तकदल में से दो नर्तक शेर का मुखौटा पहनते हैं। इस नृत्य में शेष नर्तक दल इन दो शेरों को काबू करने का प्रयत्न करते हैं, जिसका स्पष्ट अभिप्राय यही है कि भूत-प्रेत और आपत्ति को वीरता से काबू में किया जा सकता है। इस लोक नृत्य के साथ ढोल, लामा नरसिंगे और शहनाई बजाए जाते हैं। लाहौल-स्पिति के क्षेत्रों में भी यह लोक-नृत्य लोकप्रिय हैं।
थरक्याङ नृत्य :
इस नृत्य में थर (बाघ) की तरह नर्तक लोक तीव्र गति से नाचते हुए आगे कदम बढ़ाते हैं और पीछे हटते हैं। इसके नृत्य गीत भी नाटी की तरह ही होते हैं। इस नृत्य में बोर्ची नाटी का लोक गीत गाया जाता है। प्राय: यह नृत्य तभी प्रदर्शित होता है, जब कोई शिकारी बाघ को मारता है। ऐसे अवसर पर शिकारी के सिर पर वीरता की प्रशंसा के लिए पगड़ी बांधी जाती है और बाघ की खाल में भूसा भरकर उसे नचाया जाता है।

नागन कायङ नृत्य :
किनौर के इस नृत्य में नर्तक साँप की तरह टेढ़ी-मेढ़ी पंक्तिओं में नाचते हैं। चगोव, फुल्याच या ऐराटड, मेलों में यह नृत्य कभी प्रदर्शित होता है। इस नृत्य में एक विशेष व्यक्ति कण्डे की देवी नागिन बन जाता है और हाथ में पानी से भरा ‘क्रो’ दिया जाता है। इससे गिरा हुआ पानी सौभाग्य चिन्ह समझा जाता है। इसलिए इस जल को अपने शरीर पर गिराने के लिए अन्य नर्तक सर्प की तरह नाचते हुए नागिन के पास जाते हैं।
मरकर नृत्य :
यह लाहौल स्पीति का लोकप्रिय नृत्य है। इस नृत्य में नर्तक मुख पर मुखावरण पहनते हैं। शरीर का पहनावा इस तरह का होता है कि शरीर का कोई भी अंग दिखाई नहीं देता है। इस नृत्य में लामा लोग ‘ गीथर उत्सव ‘ पर खुकरी के साथ नाचते है।
छम या प्रेत नृत्य :
यह एक धार्मिक नृत्य है जो लामाओं द्वारा प्राय: गोम्पा में प्रदर्शित किया जाता है। नर्तक जानवरों और भड़कीले प्रेतों के मुखौटे पहनते है।नर्तक विभिन्न प्रकार के प्राय: आठ मुखौटे पहनते है। ये आठ करोढ़ा भयानक रूप आठ बोधिसत्व के प्रतिक है। लोक विशवास के अनुसार प्रसिद्ध बौद्ध लामा पल्दन ईश ने इस लोकनृत्य की परम्परा आरम्भ की थी। यह लोकनृत्य बौद्ध लामाओं के तांत्रिक नृत्य पद्धति है।
भुचन नृत्य :
इस नृत्य में भुचन जाति के लोग नाचते हैं , इसलिए इसका नाम भुचन पड़ गया है। यह पिन घाटी का नृत्य है। इसमें याक नृत्य , सिंह नृत्य , बन्दर नृत्य और बाघ नृत्य का भी प्रचलन है। इसके साथ इस नृत्य में तलवार चलाने की दक्षता प्रदर्शित होती है।
Folk Dances of Himachal Pradesh | हिमाचल प्रदेश के लोकनृत्य
कुल्लू का लालड़ी नृत्य :
यह कुल्लू का प्रसिद्ध नृत्य है। यह नृत्य ‘संवाद नृत्य’ से भी जाना जाता है। इसमें प्राय यह नियम रहता है कि जिस नर्तक दल की पंक्ति ( टप्पा ) न जुड़ सके वह पराजित समझी जाती है। यह औरतों का लोकप्रिय नृत्य है।
हरण नृत्य :
हरिण नर्तक ‘ नामक से विख्यात , किन्नर समुदाय के आदिम प्रागैतिहासिक स्वांग ‘होरीडफो ‘ कुल्लू जनपद के (हरण ) और चम्बा क्षेत्र में प्रचलित ‘हरणातर ‘ जैसे लोकधर्मी नाटयों में पर्याप्त साम्य है। कुल्लू में हरण नृत्य का शुभारम्भ कुल्लू के अंतिम दिन ‘लंका दहन की पूर्व संध्या या ‘महल्ला रात्रि ‘ पर महादेव की हेसन देवता के सामने विशिष्ट नृत्य करके संपन्न की जाती है। इस लोकनृत्य में तीन पात्र होते हैं हरण, बूढ़ी , कान्ह , जिन्होंने ने दोहड़ू (कम्बल ) पहने होते हैं।
तलवार या खंडायते या गडायत नृत्य :
यह कुल्लू का धार्मिक वीर रस प्रधान लोकनृत्य जो देवयात्रा पर तलवार के साथ किया जाता है। कुछ नर्तक विलग होकर नृत्य के साथ तलवार का खेल दिखाते हैं। इस खेल में प्रत्येक नर्तक नाचता हुआ, दूसरे प्रतिद्वन्द्वी के वार से बचाव करता है। शेष नर्तक दल एक हाथ में तलवार लेकर और दूसरे में ढाल लेकर नृत्य करते है।
सांगल नृत्य :
सांगल नृत्य में स्त्री पुरुष साथ नाचते हैं। यह नृत्य स्थानीय देवी देवता और वीर पुरुषों की याद में प्रदर्शित होते हैं। इसमें पुरुष और स्त्रियां आमने सामने अलग-अलग अर्ध्धावृत बनाते हैं, परन्तु लोकनृत्य की प्रगति के साथ-साथ वे आपस में मिल जाते हैं। लोकनर्तक प्रश्नोतर के रूप में नृत्यगीत गाते हुए नाचते हैं।
करथी नृत्य :
यह कुल्लू वीर रस प्रधान लोकनृत्य है। इस नृत्य में प्राय: स्त्री पुरुष दोनों नाचते हैं। इस नृत्य में हाथ पांव की थिरकन एक ओर और लय दूसरी ओर होती है। भड़कीले,सुन्दर और नये वस्त्र, आभूषण में लोग गांव के खुले मैदान में आकर चांदनी रात में लोकगीत गाते हुए नाचते हैं। लोकनर्तक एक दूसरे का हाथ थाम कर एक वृत बनाते हैं और धीरे-धीरे संगीत और लोकनाच की ताल पर नाच आरम्भ होता है। शीघ्र ही नृत्य में गति आने लगती है और तब यह नृत्य चर्मोत्कर्ष पर पहुंच जाता है तब नारी लोकनर्तक अपने सहायक नर्तक का आनन्द और भी बढ़ाकर अपने हाथ और पैरों के स्पन्दन से प्रेरित करती हैं। दशहरा या अन्य अमुख उत्सवों पर कुल्लू के लोकनृत्यों की शोभा देखते ही बनती है।
हुलकी नृत्य :
देऊ खेल ‘के पूर्वरंग को ‘ हुलकी नृत्य, भी कह सकते हैं। हुलकी नृत्य में देवता अपनी प्रसन्नता प्रकट करता है। देवता की गुरमंडली के सभी लम्बे चोले पहनकर सिर पर गोल कुल्ल्वी टोपी रखकर, पंक्तिबद्ध बैठ जाते हैं। जब गुर में कम्पन्न शुरू होती है , सिर की टोपी एक ओर गिर जाती है। उसके बाद नृत्य शुरू होता है।
दौढी नृत्य :
यह भी देव-नृत्य है। पांजड़ा, भाग्तो, पोआड़ा गाने पर पाप, नेवा, देवी इत्यादि छोटे-छोटे देवी-देवते हिंगरते है। हुल्की या हुडक, खन्जरी गाने वाले भी झूम-झूम कर नाचते हैं। यह इष्ट देव से रक्षा के लिए घर में ही आयोजित होता है।
नाटी :
हिमाचल के मध्य क्षेत्रों का देश-प्रसिद्ध सामूहिक नृत्य नाटी है जिसे शिमला क्षेत्र में गी या ‘माला’ भी कहते हैं। कुल्लू , मंडी , शिमला ,चम्बा ,सिरमौर , में नाटी नृत्य अनेक रूप में प्रचलित है। कुल्लू में इसे सराजी नाटी कहते है। नाटी में स्त्री-पुरूष, बच्चे-बूढ़े सभी भाग ले सकते हैं। सभी एक दूसरे का हाथ पकड़ कर पैर आगे पीछे रखते हुए गाने के लय के अनुसार शरीर के अन्य अंगों को हिलाते हुए नाचते रहते हैं। खुले स्थान में लकड़ी का अंगीठा जला दिया जाता है और उसके चारों ओर नृत्य चलता रहता है। क्षेत्र और अभिनय के लिहाज से नाटी के लुड्डी, डीली-नाटी, फेटी-नाटी, देहरी नाटी, बुशैहरी-नाटी, बाहडु-नाटी आदि भेद हैं।
घुघती नृत्य :
यह नृत्य जिला शिमला का एक लोकप्रिय नृत्य है। इस नृत्य में नर्तक अपना हाथ अगले नर्तक के कन्धों पर रखते हैं। अगले तीन चार नर्तक घुघती गीत गाते हैं तथा शेष नर्तक उसे दोहराते हैं।
गिह या घी लोकनृत्य :
यह सिरमौर के गिरिपार क्षेत्र तथा शिमला के ठियोग , चौपाल , जुब्बल , कोटखाई क्षेत्र का प्रसिद्ध लोकनृत्य है। यह प्रशनोत्तर के रूप में गाया जाता है।
हुड़क :
यह शिमला के चौपाल क्षेत्र का लोकप्रिय नृत्य है। जिसे शिव के ताण्डव का एक रूप माना जाता है। इसे हुड़क (डमरू ) वाद्ययंत्र के साथ किया जाता है।
ठोडा नृत्य :
यह सिरमौर जिले का लोकप्रिय नृत्य है। इसे युद्ध जाति खुंडो द्वारा यह युद्ध नृत्य विशु के अवसर पर किया जाता है।
झूरी नृत्य :
यह सिरमौर क्षेत्र में प्रसिद्ध नृत्य है। यह एक स्त्री नृत्य है। इसे खुले वातावरण में ताल के साथ किया जाता है।
प्रयाण, बिशू, बिरशू, युद्ध नृत्य :
शिमला और सिरमौर में बिरसु लोकगीत के साथ इस नृत्य को किया जाता है। यह नृत्य खुंड जाति (युद्ध प्रिय जाति ) के लोग करते हैं। में लोक नर्तक हाथ में कोई डंडा, रूमाल, तलवार या डांगरू लेकर एक दूसरे के पीछे या इधर-उधर बिना क्रम के खड़े होकर नाचते हैं।
दिवाली नृत्य :
दिवाली के समय खुले मैदान के मध्य में बहुत सारी लकड़ियों को इकट्ठी कर उन्हें रात को जलाया जाता है और उसके चारों ओर लोग दिवाली नृत्य करते हैं। दो-दो नर्तकों की जोड़ी एक दूसरे की कमर पर हाथ रख कर दूसरे हाथ में मशाल या रूमाल लेकर ढोल या खंजरी के साथ दिवाली के गीत गाते हुए नाचते हैं।
फागली नृत्य :
कुल्लू में फागली का त्यौहार विशेष रूप से मनाया जाता है। इस नृत्य में कुछ विशेष नर्तक राक्षसों का घास फूस का लिबास और मुंह पर प्राचीन समय के लकड़ी के बने हुए राक्षसों के मुखौटे लगा कर नाचते हैं। उनका नाच और उनकी गति नि:सन्देह मनुष्य की नहीं होती। एक नर्तक (राक्षस) इस सुन्दर किले में से किसी सुन्दर स्त्री या अच्छी लड़की को तलाश करने का अभिनय करता है, जिससे स्पष्ट होता है कि राक्षसों का परस्पर नाच तो होता ही है, इसके साथ-साथ इस नृत्य में देवता के हाथों राक्षसों की पराजय या दूसरी अवस्था में राक्षस के साथ समझौता की कहानी दोहराई जाती है। इस नृत्य में उन हथियारों का भी प्रदर्शन किया जाता है, जो इस लड़ाई में प्रयोग में लाए गए थे।
डांगी नृत्य :
यह छतराड़ी एवं भरमौर क्षेत्र का प्रसिद्ध नृत्य है जिसे गद्दी स्त्रियाँ खड़ी होकर पंक्तियों तथा वृताकार नाचती है। सुन्ही-भुखु के प्रणय गीत को इसमें बड़ी मंद और मधुर गति से गया जाता है।
पंगवाल नृत्य :
यह नृत्य पांगी क्षेत्र में पुरुष और महिलाओं द्वारा किया जाता है। स्त्री और पुरुष अलग-अलग नाचते हैं। पुरुष दिन में अधिक नाचते है और स्त्रियां सायं ढलने के बाद नाचना पसंद करती है।
घूरेई नृत्य :
यह चम्बा का प्रसिद्ध नृत्य है। इस पारम्परिक नृत्य में केवल महिलाएं ही नाचती है। यह नृत्य मेलों, विवाह एवं जातराओं के समय किया जाता है।
सेन नृत्य :
पंगवालों का सेन नृत्य धार्मिक नृत्य है। यह नृत्य भूतों को भगाने के लिए किया जाता है।
झमाकड़ा :
यह कांगड़ा जिले का लोकनृत्य है। यह विवाह के अवसर पर स्त्रियां करती है।
छोहारा नृत्य :
यह महासू का लोकनृत्य है।
Folk Dance of Himachal Pradesh | हिमाचल के अन्य लोकनृत्य :
- बाक्यांग : यह किनौर का सामूहिक लोकनृत्य है जिसे प्राय: स्त्रियों द्वारा किया जाता है।
- कायड़ नृत्य :लाहौल-स्पीति के राजा युकुंतरस के विवाह पर यह नृत्य पहली किया गया था।
- शांद नृत्य : लाहौल घाटी में ‘बुद्ध की स्तुतियों पर आधारित यह नृत्य फसल की कटाई के समय किया जाता है।
- हरकी कायड़ : युवा लोग प्रेम गीत के साथ तीव्र गति से इस नृत्य को करते हैं।
- करियाला : यह शिमला जिले का लोकनृत्य है
- बुड़ाह : यह सिरमौर का लोकनृत्य है।
- मुंजरा : यह एक एकल नृत्य है। यह शिमला और सिरमौर जिले का नृत्य है।
- डेपक : यह छतराड़ी क्षेत्र का प्रसिद्ध नृत्य है।
- झांझर : यह चम्बा का प्रसिद्ध नृत्य है।
- झांकी और हांतर : यह चम्बा जिले का प्रसिद्ध नृत्य है।
- ठडईर नृत्य : सिरमौर क्षेत्र के इस नृत्य में ऐतिहासिक कथाओं को दिखाया जाता है। जिसमे नर्तक गंडासा , डंडा और तीर-कमान लेकर नाचते है।
- रासा नृत्य : यह सिरमौर क्षेत्र का लोकप्रिय नृत्य है। यह एकता का प्रतिक है। इस नृत्य में नर्तक लम्बी कतार में एक साथ झूमते है।
Folk Dances of Himachal Pradesh | हिमाचल प्रदेश के लोकनृत्य
Read more : धामी गोली कांड
Read more : हिमाचल प्रदेश का इतिहास
- IDBI Bank Ltd Specialist Cadre Officers Recruitment 2025 – Apply Online
- HP CU Dharamshala Finance Officer Recruitment 2025
- HPU Shimla All Latest Notifications -April 2025
- HPBOSE D.El.Ed./JBT Entrance Exam Question Paper Pdf June 2024
- NIELIT Shimla Helper, Yoga Teacher, Special Educators Recruitment 2025 (Outsourced Based)