History of District Hamirpur – Himachal Pradesh
Table of Contents
हमीरपुर का प्राचीन इतिहास (स्रोत) :
हमीरपुर जिला का इतिहास कांगड़ा के कटोच वंश से जुड़ा है, जिसका राज्य विस्तार रावा सतलुज नदी के मध्य पूर्व काल में फैला हुआ था। पुराण व पाणिनी लिखित ‘अष्टाध्यायी’ से यह विदित होता है कि महाभारत काल में हमीरपुर जिला का भू-भाग तत्कालीन प्राचीन जलांधरा त्रिगर्त साम्राज्य का भाग था।
पाणिनी ने इस खंड के लोगों को महान योद्धा तथा लड़ाके होने का वर्णन कियाहै। लड़ाके तथा महान योद्धा होने की यह परम्परा आज भी देखी जाती है, जहाँ भारतीय सेना में हजारों नौजवान अपनी सेवाएं दे रहे हैं।
यह माना जाता है कि गुप्त साम्राज्य ने अपनी सम्प्रभुता प्राचीन काल में यहाँ तक स्थापित कर रखी थी। मध्यकाल में यह क्षेत्र महमूद गजनी, तैमूर लैंग, मुगल तथा बाद में सल्तनन शासकों के अधीन रहा था।
समय के साथ ये उपरलिखित सब राजसत्ताएं समाप्त हो गई और जब कटोच वंश का शासक हमीर चंद सतासीन हुआ तो उस समय यह क्षेत्र राणाओं (पहाड़ी सामंत) के अधीन था। इनमें प्रमुख राणा थे- मेवा के राणा, महलता के राणा तथा ढटवालिया राणा।
हमीरपुर की स्थापना :
ऐसा कोई समय नही था जब ये राणा एक दूसरे के विरुद्ध सता संघर्ष में उलझे हुए नहीं थे। जब इस क्षेत्र पर कटोच वंश की प्रभुसत्ता स्थापित हुई तो इन राणाओं की गतिविधियों पर भी नियंत्रण लग गया। इस खंड में कटोच वंश की प्रभुसत्ता प्रधानतः हमीर चंद के समय सन 1700 से 1747 ई. के मध्य स्थापित हुई। हमीर चंद ने हमीर किले का निर्माण करवाया जिस पर हमीरपुर शहर का नामकरण हुआ। हमीरपुर मुख्यतः राजा संसार चंद द्वितीय के राज्य काल में अधिक प्रचलित व प्रसिद्ध हुआ जब उन्होनें अपनी राजधानी सुजानपुर टीहरा में स्थापित की तथा यहाँ पर महल व मंदिरों का निर्माण करवाया।
राजा संसार चंद :
संसार चंद का राज्य काल 1775 से 1823 ई. तक चला। इस राजा ने पुरजोर से जालंधरा-त्रिगर्त साम्राज्य स्थापित करने की दो बार असफल कोशिश की जिस प्रकार का साम्राज्य उसके पूर्वजों का पूर्व काल में हुआ करता था। सिक्ख राजा रणजीत सिंह का उदय राजा संसार चंद के सपनों पर कुठाराघात के रूप में आया। इसलिए संसार चंद फिर अपना सारा ध्यान व शक्ति पहाड़ी रियास्तों की ओर लगाया। इसी संदर्भ में मंडी रियास्त पर अधिकार कर वहाँ के अवयस्क राजा ईश्वर सेन को बंदी बना कर नदौन में 12 साल तक रखा।
राजा संसार चंद ने सुकेत रियासत को भी अपने अधीन कर उसे वार्षिक खिराज (भेंट) देने पर वाध्य किया तथा बिलासपुर रियास्त के सतलुज आर के क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया। राजा की साम्राज्यवादी इचछाओं का बोध होने पर पहाड़ी राजाओं ने एकता बनाई व संसार चंद की बढ़ती शक्ति को चुनौती देने के लिए गोरखाओं को आमंत्रित किया।
संसार चंद का सयुंक्त सेनाओ से युद्ध :
पहाड़ी राजाओं की संयुक्त सेनाओं व राजा संसार चंद की सेना के मध्य खरवाड के नजदीक भोरंज तहसील में महल मोरियाँ नामक स्थान पर युद्ध हुआ लेकिन संयुक्त सेनाओं को हार का सामना करना पड़ा और ये सब सतलुज नदी के बाएं किनारे तक खदेड़ दी गई। इसी समय राजा संसार चंद के सेना अध्यक्ष ने राजा को सलाह दी कि वर्तमान मंहगे सैनिकों की जगह सस्ते रोहिल्ला सैनिकों को सेना में शामिल करे। यह सलाह व इसकी स्वीकारोक्ति राजा संसार चंद के लिए घातक सिद्ध हुई।
संसार चंद की हार :
कटोच सेना की घटती शक्ति की खबर जब संयुक्त सेनाओं को लगी तो उन्होनें गोरखाओं के साथ मिलकर राजा संसार चंद की सेना पर आक्रमण किया। महलमोरियाँ के पास हुए इस द्वितीय युद्ध (1806ई. )में कटोच सेना की हार हुई, राजा संसार चंद ने अपने परिवार सहित कांगड़ा किला में शरण ली। गोरखा सेना ने कांगड़ा किला को घेर लिया तथा कांगड़ा व महल मोरियां के बीच के क्षेत्र में भारी लूट पाट मचाई तथा गांव उजाड़े गए।
गोरखों ने राजा ईश्वरी सेना को नादौन जेल से छुड़ाया। किला तक घेरा तीन साल पर चला। राजा संसार चंद की प्रार्थना व संदेश पर महाराजा रणजीत सिंह ने सेना लेकर गोरखाओं को शिक्सत दी तथा उन्हें 1809 ई. में वहाँ से खदेड़ दिया। लेकिन कटोच राजा को इसके लिए भारी कीमत चुकानी पड़ी, क्योंकि इस
सहायता के बदले रणजीत सिंह को कांगड़ा किला व 66 गांव देने पड़े।
कांगड़ा व हमीरपुर खंड़ों पर सिक्ख सम्प्रभुता 1846 ई. तक बनी रही जब अंग्रेजों ने प्रथम एंग्लो सिक्ख युद्ध में उन्हें हरा दिया तो यह क्षेत्र अंग्रेज सता के अधीन आ गया। राजा संसार चंद की मृत्यु एक अप्रसन्न व निराश राजा के रूप में हुई। राजा संसार चंद के उपरांत उसके उत्तराधिकारी प्रमुद्ध चंद ने सिक्खों के साथ मिलकर सफल तौर पर अंगेजों को खदेड़ने की कोशिश की। अंग्रेजों ने कांगड़ा जिले का पुनर्गठन कर उसमें हमीरपुर व लाहौल स्पिति को भी शामिल कर दिया। 1846 के अधिग्रहण के उपरांत नदौन को कांगड़ा का तहसील मुख्यालय बनाया गया। 1888 में कांगड़ा व हमीरपुर तहसील के क्षेत्रों को पुनर्गठित कर पालमपुर तहसील बनाई गई सन् 1846 से 1966 तक कागड़ा पंजाब प्रांत का हिस्सा था। हमीरपुर भी इस प्रकार तब तक पंजाब प्रांत का ही अंग तथा जिला कांगड़ा की तहसील था।
आधुनिक हमीरपुर :
1966 में पंजाब पुनर्गठन के समय कागड़ा तथा अन्य कई पहाड़ी क्षेत्र हिमाचल को सौपें गए। 1 सितम्बर 1972 को जिला पुनर्गठन के उपरांत कांगड़ा जिला को तीन हिस्सों में बांट कर हमीरपुर, ऊना व कांगड़ा जिले निर्मित किए गए। हमीरपुर जिला के निर्माण के समय इसमें दो तहसीलें थी- हमीरपुर व बड़सर । सन् 1980 में तीन और तहसील बनाई – टीरा सुजानपुर, नादौन व भोरंज।
हमीरपुर के ऐतिहासिक स्थान :
सुजानपुर टीहरा :
काँगड़ा के राजा अभय चंद ने 1748 ई. में सुजानपुर की पहाड़ियों पर दुर्ग और महल बनवाए जो टिहरा के नाम से प्रसिद्ध हुए। सुजानपुर शहर की स्थापना घमण्ड चंद ने की। संसार चंद ने सुजानपुर टिहरा को अपनी राजधानी बनाया। घमण्ड चंद ने 1761 ई. में चामुण्डा मंदिर का निर्माण करवाया। राजा संसार चंद ने सुजानपुर टिहरा में ब्रज जैसी होली का त्यौहार शुरू करवाया।
नादौन :
नादौन शहर ब्यास नदी के किनारे बसा है। इस स्थान पर 1687 ई. में गुरु गोबिंद सिंह और बिलासपुर के राजा भीम चंद ने मुगलों को हराया था। संसार चंद ने नादौन के बारे में कहा था “आएगा नादौन जाएगा कौन ” राजा संसार चंद ने मण्डी के राजा ईश्वरी सेन को 12 वर्षों तक नादौन जेल में कैद रखा था। मूरक्राफ्ट ने 1820 ई. में नादौन की यात्रा की।
महालमोरियाँ :
हमीरपुर के महालमोरियाँ में 1806 ई. में गोरखों ने महाराजा संसार चंद को हराया। हमीरपुर 1806 ई. से 1846 ई. तक सिक्खों के नियंत्रण में रहा।
History of District Hamirpur – Himachal Pradesh
इसे भी पढ़ें : काँगड़ा जिला का इतिहास
- SBI Circle Based Officers (CBO) Recruitment 2025 -Apply Online
- Union Bank of India Assistant Manager Recruitment 2025 -Apply Online
- HPU Shimla All Latest Notifications -May 2025
- HP Bulk Drug Park Una Technical Experts Recruitment 2025 -Notification Out
- Bank of Baroda Office Assistant (Peon) Recruitment 2025 -Apply Online