Important Questions for HPS Allied Services Mains (GS Paper-1) – XVII

Important Questions for HPS Allied Services Mains (GS Paper-1) – XVII

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  1. निम्नलिखित में से भू-राजस्व वसूलने की कौन सी व्यवस्था के जन्मदाता अंग्रेज नहीं थे?

A) इज़ारेदारी प्रथा
B) इस्तमरारी बंदोबस्त
C) रैयतवाड़ी व्यवस्था
D) महालवाड़ी व्यवस्था
उतर-:A) इज़ारेदारी प्रथा
व्याख्या :- इज़ारेदारी प्रथा मुगलों द्वारा शुरू की गई थी। इस व्यवस्था के अंतर्गत कर वसूलने वाले व्यक्तियों को
इज़ारेदार कहते थे। इज़ारेदार के साथ शासक द्वारा लगान वसूलने का करार किया जाता था।इसमें निश्चित दर पर भू-राजस्व वसूल करने के बदले शासक इज़ारेदारों (लगान के ठेकदारों) और बिचौलियों के साथ यह करार करते थे कि वे शासक को एक निश्चित मुद्रा राशि लगान के रूप में दें। मगर वे किसानों से जितना लगान वसूल कर सकें उतना करने के लिये उन्हें आज़ाद छोड़ दिया जाता था। इससे किसानों का उत्पीड़न बढ़ा।
इसी तरह की व्यवस्था 1772 में बंगाल में वारेन हेस्टिंग्स ने की थी जिसे फार्मिंग सिस्टम(इज़ारेदारी) की संज्ञा दी गई थी।
इस्तमरारी बंदोबस्त/स्थायी बंदोबस्त जमींदारी व्यवस्था अंग्रेजो की देन थी इसमें कई आर्थिक उद्देश्य निहित थे इस पद्दति को जांगीरदारी, मालगुजारी, बिसवेदारी, इत्यादि भिन्न भिन्न नामों से भी जाना जाता था।
वारेन हेस्टिंग्ज द्वारा बंगाल में स्थापित कर संग्रहण की फार्मिंग सिस्टम से किसानों की स्थिति सोचनीय हो गयी थी। इस स्थिति में सुधार के लिए कंपनी सरकार ने लार्ड कार्नवालिस को स्थायी सुधार के लिए नियुक्त किया।स्थायी बंदोबस्त इसी का परिणाम था। यह व्यवस्था ईस्ट इण्डिया कंपनी और बंगाल के जमींदारों के बीच कर वसूलने से सम्बंधित एक एक स्थायी व्यवस्था हेतु सहमति समझौता था। इसे 22 मार्च, 1793 को लागू किया गया था। इसके द्वारा तत्कालीन बंगाल और बिहार में भूमि कर वसूलने की जमींदारी प्रथा को आधीकारिक तरीका चुना गया। बाद में यह कुछ विनियामकों द्वारा पूरे उत्तर भारत में लागू किया गया।स्थायी बंदोबस्त के तहत ज़मींदार किसानों से वसूले गए कुल रकम का दस भाग (10/11 भाग) कंपनी को देते थे एवं शेष 1/11 भाग स्वयं रखते थे। यदि कोई ज़मींदार निर्धारित तिथि तक भू-राजस्व की निश्चित राशि नहीं जमा करता था तो उसकी ज़मींदारी नीलम कर दी जाती थी।
इस बंदोबस्त के अन्य दूरगामी परिणाम भी हुए और इन्ही के द्वारा भारत में पहली बार आधिकारिक सेवाओं को तीन स्पष्ट भागों में विभक्त किया गया और राजस्व, न्याय और वाणिज्यिक सेवाओं को अलग-अलग किया गया।
रैयतवाड़ी व्यवस्था सन् 1802 में मद्रास के तत्कालीन गवर्नर टॉमस मुनरो ने रैयतवाड़ी व्यवस्था आरंभ की। यह व्यवस्था मद्रास, बंबई एवं असम के कुछ भागों में लागू की गई।
रैयतवाड़ी व्यवस्था के तहत लगभग 51 प्रतिशत भूमि आई। इसमें रैयतों या किसानों को भूमि का मालिकाना हक प्रदान किया गया। अब किसान स्वयं कंपनी को भू-राजस्व देने के लिये उत्तरदायी थे। इस व्यवस्था में भू-राजस्व का निर्धारण उपज के आधार पर नहीं बल्कि भूमि की क्षेत्रफल के आधार पर किया गया।
महालवाड़ी व्यवस्था लार्ड हेस्टिंग्स द्वारा मध्य प्रांत, आगरा एवं पंजाब के क्षेत्रों में एक नई भू-राजस्व व्यवस्था लागू की गई, जिसे महालवाड़ी व्यवस्था नाम दिया गया। इसके तहत कुल 30 प्रतिशत भूमि आई।
इस व्यवस्था में महाल या गाँव के ज़मींदारों या प्रधानों से बंदोबस्त किया गया। इसमें गाँव के प्रमुख किसानों को भूमि से बेदखल करने का अधिकार था। महालवाड़ी व्यवस्था के तहत लगान का निर्धारण महाल या संपूर्ण गाँव के ऊपज के आधार पर किया जाता था।

  1. “सूरज पानी भारत से ग्रहण करता है लेकिन वर्षा केवल इंग्लैंड को देता है।” धन निष्कासन के सिद्धांत पर यह शब्द किसने कहे हैं?

A) रमेश चंद्र दत्त
B) गोविंद रानाडे
C) दादाभाई नौरोजी
D) गोपाल कृष्ण गोखले
उतर-:A) रमेश चंद्र दत्त
व्याख्या :- “सूरज पानी भारत से ग्रहण करता है लेकिन वर्षा केवल इंग्लैंड को देता है।” धन निष्कासन के सिद्धांत पर यह शब्द रमेश चंद्र दत्त ने कहे हैं। उन्होंने अपनी पुस्तक इकोनामिक हिस्ट्री ऑफ इंडिया में धन निष्कर्षण के सिद्धांत का उल्लेख किया है उन्होंने इसे बहते हुए घाव की भी संज्ञा दी है तथा नादिरशाह द्वारा की गई लूटमार से भी इसकी तुलना की है। 1901 में गोपाल कृष्ण गोखले ने इंपीरियल लेजिसलेटिव काउंसिल के बजट भाषण में धन निष्कर्षण के सिद्धांत को प्रतिपादित किया था। 1896 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में सर्वप्रथम धन निष्कासन के सिद्धांत को स्वीकार किया गया था। गोविंद रानाडे, दिनेश बाचा, प्रोफेसर सीएन वकील जैसे नेताओं ने भी धन निष्कासन के सिद्धांत का समर्थन किया है। 1867 में ईस्ट इंडिया एसोसिएशन के सम्मेलन में प्रथम बार दादाभाई नौरोजी ने इसे इंग्लैंड डेब्टू इंडिया के नाम से प्रतिपादित किया था।
भारत में ब्रिटिश शासन के समय, भारतीय उत्पाद का वह हिस्सा जो जनता के उपभोग के लिये उपलब्ध नहीं था तथा राजनीतिक कारणों से जिसका प्रवाह इंग्लैण्ड की ओर हो रहा था, जिसके बदले में भारत को कुछ नहीं प्राप्त होता था, उसे आर्थिक निकास या धन-निष्कासन (Drain of Wealth) की संज्ञा दी गयी। धन की निकासी की अवधारणा वाणिज्यवादी सोच के क्रम में विकसित हुई। धन-निष्कासन के सिद्धान्त पर उस समय के अनेक आर्थिक इतिहासकारों ने अपने मत व्यक्त किए। इनमें दादा भाई नौरोजी ने अपनी पुस्तक “पावर्टी ऐन्ड अनब्रिटिश रूल इन इन्डिया” (Poverty and Un-British Rule in India) में सर्वप्रथम आर्थिक निकास की अवधारणा प्रस्तुत की। उन्होने धन-निष्कासन को सभी बुराइयों की बुराई (एविल ऑफ एविल्स) कहा है। उन्होने कहा था, धन का बहिर्गमन समस्त बुराइयों की जड़ है और भारतीय निर्धनता का मूल कारण। रमेश चन्द्र दत्त, महादेव गोविन्द रानाडे तथा गोपाल कृष्ण गोखले जैसे राष्ट्रवादी विचारकों ने भी धन के निष्कासन की इस प्रक्रिया के ऊपर प्रकाश डाला है।
आर्थिक निकास के प्रमुख तत्व थे-
1.अंग्रेज प्रशासनिक एवं सैनिक अधिकारियों के वेतन एवं भत्ते,
2.भारत द्वारा विदेशों से लिये गये ऋणों के ब्याज,
3.नागरिक एवं सैन्य विभाग के लिये ब्रिटेन के भंडारों से खरीदी गयी वस्तुएं,
4.नौवहन कंपनियों को की गयी अदायगी तथा विदेशी बैंकों तथा बीमा लाभांश।
भारतीय अर्थव्यवस्था प्रभाव:-
1.भारतीय धन के निकलकर इंग्लैण्ड जाने से भारत में पूंजी का निर्माण एवं संग्रहण नहीं हो सका, जबकि इसी धन से इंग्लैण्ड में औद्योगिक विकास के साधन तथा गति बहुत बढ़ गयी।
2.ब्रिटिश अर्थव्यवस्था को इस धन से जो लाभांश प्राप्त होता था, उसे पुनः पूंजी के रूप में भारत में लगा दिया जाता था और इस प्रकार भारत का शोषण निरंतर बढ़ता जाता था।
3.सरकार सिंचाई योजनाओं पर खर्च करने के स्थान पर एक ऐसे मद में व्यय करती थी जो प्रत्यक्ष रुप से साम्राज्यवादी सरकार के हितों से जुड़ा हुआ था।
4.इस धन के निकास से भारत में रोजगार तथा आय की संभावनाओं पर अत्यधिक प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। धन का यह अपार निष्कासन भारत को अन्दर-ही-अन्दर कमजोर बनाता जा रहा था।

  1. ‘ए हिस्ट्री ऑफ ब्रिटिश इंडिया’ नामक पुस्तक निम्नलिखित में से किसके द्वारा लिखी गई?

A) जेम्स मिल
B) जेम्स रेनेल
C) वारेन हेस्टिंग्स
D) इनमें से किसी के द्वारा नहीं।
उतर :-A) जेम्स मिल
व्याख्या :- 1817 में स्कॉटलैण्ड के अर्थशास्त्री और राजनीतिक दार्शनिक जेम्स मिल ने तीन विशाल खंडों में ‘ए हिस्ट्री ऑफ ब्रिटिश इंडिया’ नामक पुस्तक लिखी। इस किताब में उन्होंने भारत के इतिहास को हिंदू, मुस्लिम और ब्रिटिश, इन तीन काल खंडों में बाँटा था।
मिल को लगता था कि सभी एशियाई समाज सभ्यता के मामले में यूरोप से पीछे हैं और ब्रिटिश शासन भारत को सभ्यता की राह पर ले जा सकता था। मिल ने तो यहाँ तक सुझाव दिया था कि अंग्रेज़ों को भारत के सारे भू-भाग पर कब्ज़ा कर लेना चाहिये ताकि भारतीय जनता को ज्ञान और सुखी जीवन प्रदान किया जा सके। वह मानता था कि अंग्रेज़ों की मदद के बिना हिन्दुस्तान प्रगति नहीं कर सकता।

  1. निम्न तथ्यों पर विचार करें
    1.रॉबर्ट क्लाइव ने भ्रष्टाचार के आरोप के बाद आत्महत्या कर ली थी।
    2.वारेन हेस्टिंग्स पर ऐडमंड बर्के ने ब्रिटिश संसद में महाभियोग का मुकदमा चलाया था।

    उपरोक्त में से कौन सा/से कथन सत्य है/हैं?
    A) केवल 1
    B) केवल 2
    C) 1 और 2 दोनो
    D) न तो 1 और न तो 2
    उतर:- C) 1 और 2 दोनो
    व्याख्या :- रॉबर्ट क्लाइव को गवर्नर के अपने दूसरे कार्यकाल में कंपनी के भीतर फैले भ्रष्टाचार को खत्म करने का काम सौंपा गया था, लेकिन कार्यकाल पूरा होने पर वह 1767 में भारत से रवाना हुआ तो यहाँ उसकी सम्पत्ति 401102 पौंड के बराबर थी। अतः 1772 में ब्रिटिश संसद में उसे खुद भ्रष्टाचार के आरोपों पर अपनी सफाई देनी पड़ी। उसे इस मामले से बरी तो कर दिया गया, लेकिन 1774 में उसने आत्महत्या कर ली।
    लॉर्ड हेस्टिंग्स (1813 से 1823 तक गवर्नर जनरल) के नेतृत्व में ‘सर्वोच्चता’ की एक नई नीति शुरू की गई।
    वारेन हेस्टिंग्स के वापस लौटने पर ऐडमंड बर्के ने उस पर बंगाल का शासन सही ढंग से न चला पाने का आरोप जड़ दिया। इस आरोप के चलते हेस्टिंग्स पर ब्रिटिश संसद में महाभियोग का मुकदमा चलाया गया जो सात साल तक चला।
  1. निम्नलिखित में से कौन सी रियासत हड़प की नीति के अंतर्गत ब्रिटिश साम्राज्य में नहीं मिलाई गई थी?

A) सतारा
B) संबलपुर
C) झाँसी
D) अवध
उतर:- D) अवध
व्याख्या :- अवध को ब्रिटिश साम्राज्य में कुशासन के आधार पर मिलाया गया था ना कि हड़प की नीति के अनुसार।
ब्रिटिश काल में अधिग्रहण की आखिरी बड़ी लहर 1848 से 1856 के बीच गवर्नर जनरल बने लॉर्ड डलहौजी के शासनकाल में चली। डलहौजी ने नई नीति अपनाई, जिसे ‘विलय नीति’ का नाम दिया गया।
इस नीति के अनुसार यदि किसी शासक की मृत्यु हो जाती है और उसका कोई पुरुष वारिस नहीं है, तो उसकी रियासत हड़प कर ली जाती थी यानी वह कंपनी के भू-भाग का हिस्सा बन जाती थी।
इस सिद्धांत के आधार पर सबसे पहले सतारा (1848) का विलय हुआ। इसके बाद संबलपुर (1850), वर्तमान छत्तीसगढ़ का उदयपुर (1852), नागपुर (1853) और झाँसी (1854) के विलय हुए।
1856 में कंपनी ने अवध को अपने नियंत्रण में ले लिया तथा तर्क दिया कि वे अवध की जनता को नवाब के ‘कुशासन’ से आज़ाद कराने के लिये ‘कर्त्तव्य से बंधे’ हुए हैं इसलिये वे अवध पर कब्ज़ा करने को मज़बूर हैं।

  1. लोक सेवाओं की परीक्षा इंग्लैंड तथा भारत में एक साथ कराने की संस्तुति निम्न में से किसके द्वारा की गई थी?

A) एसचिन आयोग द्वारा
B) हाब हाउस आयोग द्वारा
C) मोंटेग्यू चेम्सफोर्ड रिपोर्ट द्वारा
D) लॉर्ड कार्नवालिस द्वारा
उतर:-C) मोंटेग्यू चेम्सफोर्ड रिपोर्ट द्वारा
व्याख्या :- मोंटेग्यू चेम्सफोर्ड ने 1918 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी। इसमें अनुशंसा की गई थी कि भारत में सिविल सेवाओं के लिए भारतीयों को कुछ पद आरक्षित किए जाने चाहिए तथा इंग्लैंड के साथ-साथ भारत में भी सिविल सेवा परीक्षा आयोजित की जानी चाहिए। इसी की सिफारिश पर 1922 में भारत में कोलकाता में प्रथम बार सिविल सेवा परीक्षा का आयोजन किया गया था। जबकि एसचिन आयोग ने 1887 में प्रस्तुत अपनी रिपोर्ट में यह अनुशंसा की थी कि सिविल सेवा परीक्षा इंग्लैंड तथा भारत में एक साथ आयोजित नहीं की जानी चाहिए।
जबकि सिविल सेवाओं के लिए प्रतियोगी परीक्षा की शुरुआत 1853 में हो चुकी थी लेकिन परीक्षा केवल इंग्लैंड में ही करवाई जाती थी।

  1. भारत का शासन ईस्ट इंडिया कंपनी से क्राउन को स्थानांतरित किया गया था?

A) 1833 के चार्टर अधिनियम के अंतर्गत
B) 1853 के चार्टर अधिनियम के अंतर्गत
C) 1858 के भारत सरकार अधिनियम के अंतर्गत
D) 1861 के भारतीय परिषद अधिनियम के अंतर्गत
उतर:- C) 1858 के भारत सरकार अधिनियम के अंतर्गत
व्याख्या :- भारत सरकार(शासन) अधिनियम (1858) को ‘भारतीय प्रशासन सुधार सम्बन्धी अधिनियम’ भी कहा गया है।ईस्ट इण्डिया कम्पनी के भारतीय शासन के विरुद्ध इंग्लैण्ड में असंतोष की भावना विद्यामान थी। वर्षों से उसे समाप्त करने हेतु आन्दोलन चल रहा था। उदारवादी, सुधारवादी और संसदीय शासन के समर्थक यह मांग कर रहे थे कि कम्पनी जैसी व्यापारिक संस्था के हाथों में भारत जैसे विशाल देश का शासन भार नहीं सौंपा जाना चाहिये। संसद ने समय-समय पर बहुत से एक्ट पारित किये, जिनके माध्यम से कम्पनी पर संसद का प्रभावशाली नियन्त्रण स्थापित करने का प्रयास किया गया। ‘1857 के विद्रोह’ ने इस विचारधारा को और भी गति प्रदान कर दी थी।
ब्रिटिश सरकार ने 1858 ई. में एक अधिनियम पारित किया, जिसे ‘भारतीय प्रशासन सुधार सम्बन्धी अधिनियम’ कहते हैं। इस अधिनियम के द्वारा भारत में कम्पनी के शासन का अन्त कर दिया गया और इंग्लैण्ड की सरकार ने भारतीय प्रदेशों का प्रबन्ध सीधा अपने हाथों में ले लिया।
1.इस अधिनियम द्वारा भारत के शासन का नियंत्रण ब्रिटिश सम्राट को सौंप दिया गया।ब्रिटेन की सरकार द्वारा किये जाने वाले सभी कार्य सम्राट के नाम पर किये जाते थे।ब्रिटेन का सर्वोच्च निकाय ब्रिटिश संसद थी। अतः इस अधिनियम के बाद भारत के लिए कानून बनाने का अधिकार भी ब्रिटिश संसद को दिया गया।
2.ब्रिटेन की सरकार के एक मंत्री ,जिसे भारत सचिव कहा जाता था ,को भारतीय सरकार का उत्तरदायित्व सौंपा गया। उसके नियंत्रण में भारत में 15 सदस्य सलाहकारी परिषद का गठन किया गया जिसका अध्यक्ष भारत का वायसराय बनाया गया।
3.इस अधिनियम द्वारा भारत के गवर्नर जनरल को वायसराय , जिसका अर्थ था-सम्राट का प्रतिनिधि ,कहा जाने लगा।
4.उद्घोषणा में सभी भारतीय राजाओं के अधिकारों के सम्मान वादा किया गया और भारत में ब्रिटिश क्षेत्रों के विस्तार पर रोक लगा दी गयी।
महारानी विक्टोरिया द्वारा की गयी उद्घोषणा 1857 ई. के विद्रोह का परिणाम थी और इस उद्घोषणा में यह विश्वास दिलाया गया कि भारतीय लोगों के साथ जाति,धर्म,रंग और प्रजाति के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जायेगा।इसमें भारतीय राजाओं को भी यह विश्वास दिलाया गया की उनकी प्रतिष्ठा,अधिकार और गरिमा का सम्मान किया जायेगा और उनके अधीनस्थ क्षेत्रों पर किसी तरह का अतिक्रमण नहीं किया जायेगा

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