नगर गनेड़ उत्सव – जिला कुल्लू (हि.प्र.)
यह उत्सव पौश मास के अमावस्या के चार दिन पश्चात होता है। एक व्यक्ति जिसे जठियाली कहते हैं, के सिर पर पुराने समय से रखे हुये भेड़ के सींग लगाते हैं। उसे मूसल पर बैठा कर कन्धे पर उठाते हैं और गांव का चक्कर लगाते हैं। उसे भांग का चौरी मुट्ठा करते हैं।
जठियाली विदूषक की तरह व्यवहार करता है। यह कार्य देव स्तुति से आरम्भ होता है। जठियाली द्वारा किये गये शब्दों के उच्चारण को अन्य लोग इसे दोहराते हैं तथा नाचते हैं।
इसके पीछे एक कहानी है। यहां एक राजा हुआ जिसकी रानी कभी हंसती नहीं थी। राजा ने उसे हंसाने के लिये ईनाम रखा। एक वजीर ने रानी के भाई को सींग लगाये और मूसल पर बिठा जुलूस निकाला। शोर सुन कर रानी बाहर निकली। भाई को इस रूप में देख कर खूब हंसी। राजा ने हर वर्ष इस प्रकार जुलूस निकालने की आज्ञा दी।
अगले दिन गूठा (रस्सा) का खेल होता है। रस्से की ओर जाणा गांव निवासी”जन्याल” तथा दूसरी ओर नग्गर गांव निवासी “नागरिक” होते हैं। रस्सा सांप का प्रतीक होता है। जिसका सिर जन्याल पकड़ते हैं और पूंछ नागरिक के हाथों में होती है और दोनों दल रस्सा पकड़े दौड़ते हैं जो दल नियत स्थान पर पहले पहुंचता है। वह जीता हुआ समझा जाता है। इस रस्म की पृष्ठभूमि इस कथा में मिलती है।
एक बड़ा नाग दैत्य बड़ा गांव नदी पार से आया और उसने स्थानीय लोगों का जीना दूभर कर दिया। लोग तंग आकर ‘जीवनारायण देवता की शरण में गये। देवता ने दोनों गांव के लोगों को इकट्ठे मिलकर दैत्य से लड़ने के लिये कहा। लोगों ने वैसा ही किया और दैत्य मारा गया। यह नाग वृत्रासुर था। जिसके मरने की प्रसन्नता मनाई जाती है तथा संघर्ष की पुनरावृति की जाती है। सांगल किन्नौर में रस्से को पकड़ कर दौड़ते हैं और उत्सव मनाते हैं।’
नगर गनेड़ उत्सव – जिला कुल्लू (हि.प्र.)
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