Formation of Himachal Pradesh | हिमाचल प्रदेश का गठन || History of Himachal Pradesh
15 अगस्त 1947 ईस्वी को पहाड़ी रियासतों के शासक ब्रिटिश सरकार के गुलामी से मुक्त हो गए। परंतु आम जनता की गुलामी अभी समाप्त नहीं हुई थी। देशी राजाओं का राज कायम रहा। रियासतों की प्रजा की आजादी की लड़ाई चलती रही। सिरमौर रियासत में प्रजामंडल के नेताओं ने नाहन नगर में कौमी तिरंगा लहराने की रस्म अदा की।
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ठियोग रियासत का विलय
ठियोग रियासत के प्रजामंडल के नेताओं ने राणा करमचंद को सत्ता छोड़ने पर मजबूर कर दिया।17 अगस्त 1947 को स्वतंत्र ठियोग लोकतांत्रिक सरकार का गठन किया और राज्य की बागडोर जनता को सौंप दी। सूरत राम प्रकाश को मुख्य बनाया गया। देवी दास मुसाफिर को कैबिनेट सेक्रेटरी बनाया गया। ठियोग भारतीय संघ में विलय होने वाली पहली हिमाचली रियासत बनी। 15 अगस्त के शुभ अवसर पर महलोग रियासत में जल्द से जुलूसों पर पाबंदी लगाई गई थी।
रियासतों के शासकों द्वारा प्रजामंडल कार्यकर्ताओं का दमन
सुकेत रियासत में इस अवसर पर प्रजामंडल के कार्यकर्ताओं का दमन जारी रहा। मंडी रियासत में भी आंदोलनकारियों को पकड़कर बंदी बनाया जा रहा था। सिरमौर रियासत के भी रियासती दमन चक्कर से मुक्ति पाने के लिए जोरदार आंदोलन चलाया। शिवानंद रमौल सहित अनेक नेताओं को बंदी बनाया गया। दिसंबर 1947 को उन्हें रिहा कर दिया गया।
इसी समय जुब्बल रियासत में भागमल सौहटा के नेतृत्व में प्रजा मंडल के सदस्यों ने रियासती प्रशासन के विरुद्ध सशक्त आंदोलन चलाया। जिसके फलस्वरूप जुब्बल के राजा की सरकार डगमगा गई। इसी प्रकार भागमल सौहटा के नेतृत्व में जुब्बल में प्रतिनिधि सरकार बनाई। मंडी और सुकेत की रियासती सरकारें किसी भी हालात में प्रशासन को लोकतांत्रिक नहीं करना चाहती थी। सुकेत के रियासती सरकार ने भी आंदोलनकारियों के दमन में कोई कसर नहीं छोड़ी।
बड़ागाँव सम्मेलन
21 दिसंबर 1947 को “हिमालयन हिल स्टेट्स रीजनल कौंसिल” का सम्मेलन शांगरी रियासत की राजधानी ‘बड़ागांव’ में हुआ। कौंसिल के प्रधान सत्यदेव बुशहरी ने इस सम्मेलन की अध्यक्षता की। प्रदेश के कई नेताओं ने इस सम्मेलन में भाग लिया। इस अधिवेशन में पहाड़ी रियासत को मिलाकर “पहाड़ी प्रांत” बनाने की केंद्रीय सरकार से मांग की गई तथा विभिन्न रियासतों में राजनीतिक बंदियों को रिहा करने की मांग भी रखी गई।
हिमाचल प्रांत का प्रस्ताव
1948 ईस्वी के आरम्भ तक पहाड़ी रियासतों में जारी स्वाधीनता संघर्ष चरम सीमा तक पहुंच गया था। रियासतों की प्रजा विदेशी शासकों के शासन से मुक्ति पाने के लिए संघर्षरत थी। 4 जनवरी 1948 ईस्वी को शिमला में एक राजनैतिक सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस सम्मेलन में पहाड़ी रियासतों के प्रजामंडल के नेताओं ने भाग लिया सुकेत रियासत के राधा कृष्ण की अध्यक्षता में इस सम्मेलन में ‘हिमालय प्रांत’ बनाने के पक्ष में प्रस्ताव पास हुआ। इस संदर्भ में कोटगढ़ रामपुर में भी सम्मेलन हुए। 25 जनवरी, 1948 को डॉ. यशवंत सिंह परमार की अध्यक्षता में शिमला में एक सम्मेलन हुआ। जिसमें ‘हिमालय प्रांत’ का प्रस्ताव पारित हुआ और रियासती संघ की निंदा की।
सोलन सम्मेलन :
बघाट के राजा दुर्गा सिंह और मंडी की राजा जोगिंदर सेन ने दिल्ली में महात्मा गांधी से मिलने के बाद पहाड़ी रियासतों के शासकों और प्रजामंडल के नेताओं की 26 जनवरी 1948 को सोलन में सभा बुलाई। इस सभा में कई नेताओं ने भाग लिया। इन शासकों और प्रजामंडल के नेताओं की सभा को “प्रतिनिधि सभा” का नाम दिया। बघाट के राजा दुर्गा सिंह को सर्वसम्मति से इस सभा का अध्यक्ष चुना गया। भागमल सौहटा को सदन सभा का नेता घोषित किया और महावीर को सचिव का पद प्रदान किया गया।
“हिमाचल प्रदेश” नाम प्रस्तावित
इस सम्मेलन में “हिमालय प्रांत” और “रियासती संघ” के प्रस्तावों पर विचार किया गया। अंत मे पहाड़ी रियासती संघ बनाने के लिए अन्य पहाड़ी रियासत जैसे चंबा मंडी सुकेत बिलासपुर सिरमौर आदि के शासकों और आंदोलनकारी नेताओं से समझौता करने का प्रस्ताव भी रखा गया । इसी सभा में प्रस्तावित रियासती संघ का नाम “हिमाचल प्रदेश” रखा गया। राजाओं की ओर से यह प्रस्ताव बाघल रियासत के कुंवर मोहन सिंह ने रखा। एक अन्य प्रस्ताव में केंद्रीय सरकार के राज्य मंत्रालय से यह निवेदन किया गया कि पंजाब की पहाड़ी रियासतों को भी प्रस्थापित हिमाचल प्रदेश में मिला दिया जाए तथा एक पूरा पहाड़ी प्रान्त बना दिया जाए।
“नेगोशिएटिंग कमेटी”
इस कार्य के उद्देश्य पूर्ति के लिए एक “नेगोशिएटिंग कमेटी” बनाई गई। इस कमेटी में बघाट के राजा दुर्गा सिंह, जुब्बल के भागमल सौहटा, बुशहर के ठाकुर सेन नेगी व सत्यदेव बुशहरी, बाघल के कंवर मोहन सिंह व हीरा सिंह पाल आदि 8 सदस्य शामिल थे। इस समिति का कार्य अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए दूसरी पहाड़ी रियासतों तथा भारत सरकार के राज्य मंत्रालय से बातचीत करना था। इस बैठक में भारत को 1 मार्च 1948 तक हिमाचल प्रदेश के अस्तित्व में आ जाने के बारे में सूचित करने का निर्णय लिया गया।
अस्थाई सरकार :
पहाड़ी रियासतों के भीतर और बाहर आंदोलनकारी नेताओं में रियासतों के भविष्य के बारे में बहुत मतभेद बना रहा। प्रजामंडल के दूसरे गुट ” हिमालयन हिल स्टेट्स सब-रीजनल कौंसिल” के सदस्य प. पदमदेव और डॉ. यशवंत सिंह परमार रियासती संघ के प्रस्ताव के विरुद्ध थे। इसी गुटबाजी के कारण हिमालयन हिल स्टेट्स सब रीजनल काउंसिल कमजोर पड़ गई और उस काउंसिल के सदस्य नेता भी दोनों गुटों में बंट गए। जनवरी 1948 को ऑल इंडिया स्टेट्स विपुल कांफ्रेंस के सरंक्षण में शिमला में बैठक की। डॉ. यशवंत सिंह परमार ने इस बैठक की अध्यक्षता की और कहा कि उन्हें संघ प्रस्ताव तभी स्वीकार होगा जब सत्ता लोगों के हाथों में दी जाए और प्रत्येक राज्यों को विलीन करके “हिमालय प्रांत” स्थापित किया जाए। यह बात राजाओं को मान्य नहीं थी।
अतः डॉ. परमार सीधे दिल्ली गए और सरदार पटेल से मिले। प्रजामंडल के इस गुट ने इस बात पर जोर दिया कि सभी रियासतें भारतीय संघ में मिल जाए। इस उद्देश्य के लिए उन्होंने शिमला में एक “हिमालय प्रांत प्रोविजनल गवर्नमेंट” अर्थात अस्थाई सरकार स्थापित की इसके मुख्य शिवानंद रमौल बनाएं गए। इस गुट ने सुकेत के राजा को संदेश भेजा कि वह अपनी रियासत को 48 घंटे के भीतर भारतीय संघ में विलीन कर दें अन्यथा उसके विरुद्ध सत्याग्रह आरंभ कर दिया जाएगा।
सुकेत सत्याग्रह :
सुकेत का राजा सत्ता छोड़ने को राजी नही था तो प. पदमदेव के नेतृत्व में आंदोलनकारी सुकेत के लिए रवाना हुए। निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार 16 फरवरी 1948 में को तत्तापानी, करसोग, फिरनु बहना, चाबा, जयदेवी आदि स्थानों पर सत्यगृहियों के जत्थे एकत्रित हुए। 18 फरवरी को तत्तापानी और फिरनु के सत्याग्रही करसोग पहुंचे। करसोग में आंदोलनकारियों ने तहसीलदार को बंदी बना दिया और सभी सरकारी दफ्तरों पर कब्जा कर लिया। 19 फरवरी को आंदोलनकारियों का जुलूस पांगणा पहुंच गया। पंडित पदम देव, शिवानंद रमौल, डॉ देवेंद्र सिंह, स्वामी पूर्णानंद, सदाराम चंदेल रतन सिंह आदि सत्याग्रह 25 फरवरी 1948 को सुकेत की राजधानी सुंदरनगर पहुंच गए।
रियासत की फौजी टुकड़ी ने हथियार डाल दिए और राजा लक्ष्मण सिंह सीधे दिल्ली चले गए। आंदोलनकारियों ने रियासत पर अधिकार कर लिया। दूसरे दिन केंद्रीय सरकार की ओर से जालंधर के चीफ कमिश्नर लेफ्टिनेंट जनरल नागेश दत्त तथा धर्मशाला स्थित कांगड़ा के डिप्टी कमिश्नर कन्हैया लाल फौजी टुकड़ी के साथ सुंदर नगर पहुंचे। चीफ कमिश्नर नागेश दत्त ने सुकेत रियासत पर भारत सरकार के अधिकार की घोषणा कर दी।
“अखिल भारतीय लोक राज्य परिषद” कॉन्फ्रेंस
1 मार्च 1948 ईस्वी को पटियाला में “अखिल भारतीय लोक राज्य परिषद” की कॉन्फ्रेंस हुई। इस कॉन्फ्रेंस में डॉक्टर परमार और दौलतराम संख्यान परिषद के अध्यक्ष डॉ. पट्टाभिसीतारमैया से मिले। इसके पश्चात पदम जी- परमार गुट के नेता दिल्ली में मिनिस्ट्री ऑफ स्टेट्स की अधिकारियों से मिले और केंद्रीय नेताओं से मिलकर पहाड़ी रियासतों के भविष्य के बारे में बातचीत की। इस काल में भागमल सौहटा-बुशहरी धड़े के नेतागण और शासक दुर्गा सिंह की अध्यक्षता में दिल्ली में केंद्रीय नेताओं से सोलन सभा के प्रस्ताव पर विचार विमर्श करते रहे।
2 मार्च 1948 ईस्वी को भारत सरकार की मिनिस्ट्री ऑफ स्टेट्स ने दिल्ली में शिमला एवं पंजाब हिल्स स्टेट्स। के शासकों की बैठक बुलाई। इस सम्मेलन में बघाट के राजा दुर्गा सिंह ने पहाड़ी रियासतों के एक अलग प्रांत “हिमाचल प्रदेश” में सामूहिक विलय का आग्रह किया। लेकिन मिनिस्ट्री के सचिव सी. सी. देसाई ने इसका विरोध किया। इस पर शासकों ने बैठक छोड़ दी और दूसरे दिन रियासतों के भागमल-बुशहरी गुट के नेताओं के साथ गृह मंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल से मिले।
हिमाचल प्रदेश के गठन को स्वीकृति
उन्होंने सरदार पटेल को सोलन सभा का प्रस्ताव पेश किया और उनसे पहाड़ी रियासतों को मिलाकर एक अलग पहाड़ी प्रांत “हिमाचल प्रदेश” के गठन की स्वीकृति देने की अपील की। काफी विचार के बाद इसे मान लिया गया। पहाड़ी रियासतों के शासकों ने इस आश्वासन पर विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए। उसके पश्चात 8 मार्च 1948 ईस्वी को मिनिस्टर ऑफ स्टेट्स की सचिव ने केंद्र सरकार की ओर से पहाड़ी रियासतों के विलय से एक अलग प्राप्त हिमाचल प्रदेश के निर्माण की घोषणा कर दी है। इस प्रकार 8 मार्च 1948 ईस्वी को शिमला पहाड़ी क्षेत्र की 27 रियासतों के विलय से हिमाचल प्रदेश के गठन की प्रक्रिया आरंभ हुई।
हिमालयन हिल स्टेट्स सब रीजनल काउंसिल (परमार पदम गुट) ने हिमाचल प्रदेश नाम का विरोध किया। वह इसका नाम “हिमालय प्रांत”चाहते थे। परंतु सरकार पटेल ने हिमाचल प्रदेश नाम का अनुमोदन किया। इस प्रकार सोलन सभा के प्रस्ताव के अनुसार “हिमाचल प्रदेश” का जन्म हुआ।
रियासतों का विलय :
9 मार्च 1948 ईस्वी को सिरमौर के राजा ने भी पझौता आंदोलन के नेताओं को रिहा कर दिया। इसी दौरान 14 मार्च 1948 ईस्वी. को मंडी और सुकेत रियासत के शासकों द्वारा विलय पत्र पर हस्ताक्षर करने के उपरांत केंद्र सरकार ने इन रियासतों को हिमाचल प्रदेश में मिला दिया। चंबा का राजा लक्ष्मण सिंह अभी तक भी अपनी रियासत को हस्तांतरित करने में आनाकानी कर रहे थे। अतः चंबा में प्रजामंडल सत्याग्रह पर उतर आए। अंत में राजा विवश होकर विलय करने के लिए राजी हो गए। 23 मार्च 1948 ईस्वी को सिरमौर रियासत के महाराजा राजेंद्र प्रकाश ने भी विलय पत्र पर हस्ताक्षर किए। इसी काल में प्रजा की इच्छा के विरुद्ध नालागढ़ (हिंदुर) रियासत का पटियाला में विलय हो गया जबकि बिलासपुर के राजा आनंद चंद ने विलय से इंकार कर दिया और आजाद कहलूर के राजा बने रहे।
हिमाचल प्रदेश का गठन
अंतर 15 अप्रैल 1948 ईस्वी को पहाड़ी क्षेत्र की 30 छोटी बड़ी रियासतों को मिलाकर व विलय करके एक पहाड़ी प्रांत “हिमाचल प्रदेश” की विधिवत स्थापना हुई और इसे केंद्र शासित “चीफ कमिश्नरज प्रोविंस” का दर्जा दिया गया। इस प्रकार पहाड़ी रियासतों के विलय से एक अलग भौगोलिक इकाई के रूप में हिमाचल प्रदेश का जन्म हुआ।
केंद्र सरकार ने एन. सी. मेहता (आईसीएस) को हिमाचल प्रदेश का प्रथम चीफ कमिश्नर नियुक्त किया और ई.पी. पेन्ड्रूल मून को डिप्टी कमिश्नर का कार्यभार दिया। 1948 से 1951 तक हिमाचल प्रदेश मुख्य आयुक्त क्षेत्र और यहां तीन मुख्य आयुक्त बने। एन. सी. मेहता, ई.पी. पेन्ड्रूल मून तथा भगवान सहाय। हिमाचल प्रदेश का 1948 में क्षेत्रफल 27018 वर्ग किलोमीटर था।
1948 -1951 हिमाचल प्रदेश :
हिमाचल प्रदेश के बनने पर सभी खुश थे लेकिन लेकिन सभी नेता अपनी एक सरकार चाहते थे जो “चीफ कमीशनर्ज प्रोविंस” की वजह से पूर्ण नही हो पाया। हिमाचल के नेता अब लोकप्रिय सरकार के लिए केंद्र सरकार से संवैधानिक लड़ाई लड़ने लगे। चीफ कमिश्नर के शासन में कोई विशेष प्रगति नहीं हुई। पहाड़ी प्रजा के लोकप्रिय सरकार की मांग भी पूरी नहीं हुई। इस कारण प्रजा का असंतोष बढ़ता गया। डॉ यशवंत सिंह परमार के नेतृत्व में प्रदेश कांग्रेस ने हिमाचल प्रदेश में लोकप्रिय सरकार के व्यवस्था के लिए केंद्र सरकार से संविधानिक संघर्ष किया। अंततः केंद्र सरकार ने हिमाचल प्रदेश को 1951 में हिमाचल प्रदेश को “ग” श्रेणी का दर्जा देकर इसके लिए विधानसभा की व्यवस्था कर दी।
1 मार्च 1952 को मेजर जनरल हिम्मत सिंह को हिमाचल प्रदेश का पहला उप राज्यपाल बनाया गया। हिमाचल प्रदेश 1951 से 1956 ईस्वी तक “ग” श्रेणी का राज्य बना रहा। 1952 में 36 विधानसभा सीटों के लिए चुनाव हुए। 24 सीटों के साथ कांग्रेस को बहुमत मिला। डॉ यशवंत सिंह परमार 24 मार्च 1952 ई. को हिमाचल प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री बने। के. एल. मेहता 1952 ईसवी में हिमाचल प्रदेश के पहले मुख्य सचिव बने। हिमाचल प्रदेश विधान सभा का प्रथम सत्र 1952 ईस्वी में राष्ट्रपति निवास (वायसरीगल लॉज) में हुआ जिसका उद्घाटन राज्यपाल मेजर जनरल हिम्मत सिंह ने किया।
1 जुलाई 1954 ईस्वी को बिलासपुर का हिमाचल प्रदेश में विलय हुआ और वह राज्य का पांचवा जिला बना। बिलासपुर के हिमाचल प्रदेश में विलय के बाद प्रदेश का क्षेत्रफल 27,018+1168 =28186 वर्ग किलोमीटर हो गया। बिलासपुर के हिमाचल में शामिल होने के बाद विधानसभा सदस्यों की संख्या 41 हो गई।
केंद्र शासित प्रदेश :
1956 ईस्वी में स्टेट्स रीऑर्गेनाइजेशन एक्ट बना तो उसके फलस्वरूप 31 अक्टूबर 1956 ईसवी. को हिमाचल प्रदेश विधान सभा समाप्त हो गई और हिमाचल प्रदेश को क्षेत्रीय परिषद दे दी गई । 1 नवंबर 1956 ईस्वी से हिमाचल प्रदेश केंद्र शासित प्रदेश बन गया और बजरंग बहादुर सिंह केंद्र शासित प्रदेश के पहले उप राज्यपाल बने।
15 अगस्त 1957 ईसवीं को चच्योट (मंडी) के ठाकुर कर्म सिंह ने क्षेत्रीय परिषद के अध्यक्ष के रूप में शपथ ली। प्रशासन के सभी अधिकार उपराज्यपाल के पास थे।
किन्नौर छठा जिला
1 मई 1960 को महासू जिले से चीनी तहसील अलग कर किन्नौर नाम से हिमाचल का छठा जिला बनाया गया।
1 जुलाई 1963 को हिमाचल प्रदेश क्षेत्रीय परिषद को हिमाचल प्रदेश विधानसभा में परिवर्तित कर दिया गया तथा तीन सदस्य मंत्रिमंडल का गठन हुआ। 1963 में डॉ यशवंत सिंह परमार दूसरी बार मुख्यमंत्री बने।
पंजाब पुनर्गठन और हिमाचल विशाल हिमाचल :
1 नवंबर 1966 ईस्वी को पंजाब का पुनर्गठन किया था इसके बाद पंजाब के क्षेत्र हिमाचल में शामिल किए गए । काँगड़ा, कुल्लू, लाहौल-स्पीति और शिमला, जिला अम्बाला से नालागढ़, गुरदासपुर से डल्हौजी, होशियारपुर से लोहारा, अम्ब, ऊना और संतोखगढ़ को हिमाचल में शामिल किया गया। हिमाचल प्रदेश में 1 नवंबर 1966 ईस्वी को जिलों की संख्या 6 से बढ़कर 10 हो गई और प्रदेश का क्षेत्रफल 55673 वर्ग किलोमीटर हो गया। 1967 ई. के चुनाव में डॉ. यशवंत सिंह परमार तीसरी बार मुख्यमंत्री बने।
पूर्ण राज्य :
24 जनवरी, 1968 की हिमाचल प्रदेश विधानसभा ने सर्वसम्मति से हिमाचल को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग का प्रस्ताव पास हुआ। 31 जुलाई को हिमाचल प्रदेश को पूर्ण राज्य देने का प्रस्ताव संसद के समक्ष प्रस्तुत हुआ। 18 दिसंबर 1970 को हिमाचल प्रदेश राज्य अधिनियम भारतीय संसद से सर्वसम्मति से पारित हो गया। 25 जनवरी 1971 को तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने शिमला के रिज मैदान पर हिमाचल प्रदेश को देश का 18वां राज्य बनने की घोषणा की। वर्ष 1948 से 1971 तक प्रदेश के नेताओं को जनता ने पूर्ण राजत्व का उद्देश्य संपूर्ण लोकतांत्रिक विधि द्वारा ही प्राप्त किया और दर्शाया भी कि किस प्रकार गांधीवादी सिद्धांत उच्च कोटि के समाज की संरचना में सहायक होते हैं।
पूर्ण राज्य बनने के समय हिमाचल में 10 जिले थे । 1972 में जिलों का पुनर्गठन किया गया। कांगड़ा जिला को विभाजित कर ऊना व हमीरपुर जिलों को बनाया गया। वही शिमला महासू का पुनर्गठन कर शिमला व सोलन जिलों का निर्माण किया गया।
Formation of Himachal Pradesh | हिमाचल प्रदेश का गठन
हिमाचल प्रदेश के गठन 15 अप्रैल, 1948 को हुआ।
15 अप्रैल, 1948 को हिमाचल प्रदेश में 30 रियासतों का विलय हुआ था।
हिमाचल दिवस 15 अप्रैल को मनाया जाता है।
1 जुलाई, 1954
1 नवंबर, 1956
25 जनवरी, 1971